________________
५४
शका-समाधान
**
(१४)
शंका- आपके समाज की ओर से प्रकाशित हुए कई ग्रन्थों में तीर्थंकर प्रभु के फोटो दिये गये हैं, उन फोटुओं में उनके मुँह पर मुखवस्त्रिका बताई गई है । तो क्या तीर्थंकर प्रभु भी मुँहपत्ति बांधते थे?
समाधान - महाशय ! आपने जो कुछ भी शंका की है और श्री ज्ञानसुन्दरजी ने भी ऐसी ही बिना आगा पीछा सोचे द्वेष मिश्रित कुतर्क कर डाली है। उसके लिए आपको सरल बुद्धि से इस प्रकार समझना चाहिए कि -
यद्यपि तीर्थंकर प्रभु वस्त्र मात्र नहीं रखते हैं और नग्न ही रहते हैं, तथापि वेही प्रभु अन्य साध्वादि को वस्त्रादि रखने का विधान फरमाते हैं. इसमें तो आपके व हमारे मतभेद है ही नहीं । वस्त्र के नहीं होने पर भी प्रभु अतिशय के प्रभाव से सर्व साधारण को वस्त्र युक्त जैसे ही दीखते थे, यह भी दोनों मानते हैं। फिर जब प्रभु साधु वेषयुक्त दिखाई देते हों, तो साधु वेष में तो मुखवस्त्रिका है ही । फिर आपकी यह तर्क कहाँ ठहर सकती है ? और इस तर्क से तो आपका कर-वस्त्र भी उड़ जाता है। क्या इसका भी कुछ भान है ?
जो लोग तीर्थंकर प्रभु को नग्न मान कर भी उनकी मूर्ति के लंगोट कसते हैं और वीतराग अवस्था की (कायोत्सर्गयुक्त) कही
* तीर्थंकर प्रभु को नग्न मानकर उनकी मूर्ति के कोट जाकेट पतलून कालर आदि पहनाकर उन्हें विदेशी जैसे बनाने वाले, और इस प्रकार मनमानी म मनाने में प्रभु भक्ति बतलाने वाले श्री ज्ञानसुन्दरजी को अनुचित रीति से
की गई अपनी अनधिकार दस्तंदाजी के लिए लज्जित होना चाहिए ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org