Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 71
________________ ५२ ** शंका-समाधान मुखवस्त्रिका जैन लिंग है। यद्यपि पूर्वार्द्ध में यह विषय सप्रमाण सिद्ध किया जा चुका है, फिर भी ज्ञानसुन्दरजी के मिथ्या आक्षेप का प्रतिकार करने के लिए कुछ पंक्तियां और भी लिखी जाती हैं। - यह बात तो स्पष्ट है कि श्री ज्ञानसुन्दरजी ने अपना पूर्व वैर अदा करने के लिये ही ये गालियां दी हैं । इस आवेग में आपने यह नहीं सोचा कि इसमें कहीं मेरी अज्ञता या शत्रुता तो प्रकट नहीं होगी ? जब कि श्री ज्ञानसुन्दरजी के सहयोगी ही मुखवस्त्रिका मुँह पर बांधना जैन लिंग और नहीं बांधना कुलिंग स्वीकार कर रहे हैं, फिर इससे अधिक और क्या प्रमाण चाहिये ? देखिये वे प्रमाण - - ** " मुँहपत्ति चर्चा सार" पंन्यास रत्नविजयजी गणि रचित पृष्ठ ३६ पंक्ति ५ मुखवस्त्रिका किसलिए रक्खी जाती है इसके कारणों में तीसरा कारण:"साधुवेश - लिंगमाटे' इसमें मुखवस्त्रिका को साधु वेश - लिंग में स्वीकार किया है। आगे देखिये - " " प्रसंगे मुँहपत्ति बंधन ए कुलिंग नथी" पृष्ठ ३५ पंक्ति ५ 66 " बांधवाना प्रसंगे न बांधवामां आवे, ते कुलिंग" पृष्ठ ४१ पंक्ति १३ क्या ? अब भी ज्ञानसुन्दरजी अपने को स्वलिंगी तथा शुद्ध प्रवृत्ति वालों को कुलिंगी कहने की धृष्टता करेंगे? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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