Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 69
________________ ५० शंका-समाधान ************************************** मुखवस्त्रिका मुँह पर बांधी जाती थी। दूसरी बात यह भी मालूम होती है कि जब व्यावहारिक केश कर्तन के कार्य में थूक के कणों व मुँह के श्वास का बचाव करने के लिए भी आठ प्रत के बिना उद्देश्य सिद्धि नहीं हो सकता, तो वायु जैसे सूक्ष्म जीवों की रक्षा करने के लिये तो आठ प्रत वाली होनी ही चाहिये। (२) "आचार दिनकर" में लिखा है कि - वितस्तिश्च त्वाराङ्गलाश्च, एतच्चतुरस्र मुख-वस्त्रिका प्रमाणम्। तस्य समाचरणा वस्त्रस्यपालिं वामतो विधाय, ततः परं मञ्जनेन द्विगुणं कुर्यात्, पुनस्ततोपि द्विगणम्, ततः तिर्यग् भङ्गेनाष्टगुणं कुर्यात्। एक वेंत और चार अंगुल, यह चोकोन मुँहपत्ति का प्रमाण है। उसके आचरण करने योग्य बांधने की विधि-कपड़े की बायीं ओर से पाली बनाकर, उसके बाद मोड़ के दो पट करे, फिर उससे भी दो पट बाद तिरछी मोड़ के आठ गुण (आठ पट) करे। इसमें आठ प्रत वाली मुखवस्त्रिका बनाने की विधि बताई गई है। (३) मुखवस्त्रिका हाथ में रखने वाले भी आठ प्रत वाली ही रखते हैं। (४) मूर्तिपूजा के समय मुखकोष बांधा जाता है वह भी आठ प्रत वाला ही होता है। __ अतएव आठ प्रत वाली मुखवस्त्रिका मुँह पर बांधना प्रामाणिक है और वह बिना डोरे के नहीं बांधी जा सकती है। जो लोग कानों के छिद्रों में पिरोकर बांधते हैं, उसमें खास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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