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मुखवस्त्रिका सिद्धि
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मुँहपत्ति में डोरा डालना -
जहां मुखवस्त्रिका मुँह पर बांधना सिद्ध है वहां यह शंकाही अनुचित है कि मुखवस्त्रिका डोरे से क्यों बांधी जाय ? फिर भी इस सम्बन्ध में विचार किया जाता है।
मुखवस्त्रिका होती तो वस्त्र की ही है और वह भी आठ प्रत वाली और कानों से लेकर ही बांधी जाती है। तब बांधने के लिए किसी दूसरी चीज की आवश्यकता होती ही है। वह वस्त्र, सूत या डोरी के सिवाय अन्य क्या हो सकता है? उसमें भी वस्त्र की चिंधी (लोरी) तो चपटी और जल्दी फट जाने वाली होती है। बारबार इसकी याचना भी करनी पड़े। इसलिये इस कार्य में बटे हुए सूत की डोरी ही अधिक उपयोगी हो सकती है। अन्यथा आठ प्रत वाली मुँहपत्ति कैसे बंध सकती है?
खरतर गच्छीय साधु व्याख्यान के समय जो नासिका से मुखवस्त्रिका बांधते हैं, वे भी कानों में ही पिरोते हैं । परन्तु वे मुखवस्त्रिका ही के कपड़े से उसे बांधते हैं। जिससे वह आठ प्रत वाली नहीं रहती, इससे मुँह की वायु का वेग उतना कम नहीं हो सकता, जितना आठ प्रतवाली से होता है । अतएव आठ प्रत वाली मुखवस्त्रिका ही मुँह पर बांधनी उचित है। प्रमाण के लिए देखिए(१) भगवती सूत्र श० ६ उ० ३३ में जमालि के दीक्षाधिकार में ऐसा उल्लेख है कि -
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"सुद्धाए अट्ठपडलाए पोत्तिए मुहं बंधई" जो भी यह पाठ गृहस्थ नाई के सम्बन्ध का है, यह तो सिद्ध हो सकता है कि उस समय भी आठ प्रत वाली ही
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तथापि इस
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