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मुखवस्त्रिका सिद्धि
अगर वे तर्क करें कि इसमें तो प्रसंगोपात ही बांधने को सुलिंग कहा है, सारे दिन बांधने को सुलिंग कैसे कह सकते हैं? इसके समाधान में प्रेम पूर्वक निवेदन किया जाता है कि महाशय ! अभी तो मुँहपत्ति चर्चासार के कर्ता इस (मुखवस्त्रिका मुँह पर बांधने के) विषय में निर्णय ही पूर्ण नहीं कर सके । वे स्वयं पृष्ठ ४० में लिखते हैं कि - " यद्यपि खास बांधवाना प्रसंगोनुं चोक्खुं नक्की तारण कदाच आपणे न काढी शकीए" ये शब्द ही विचार को अवकाश दे रहे हैं? जिन पर पहले विचार किया जा चुका है। दूसरा वे स्वयं कर - स्त्री हैं, इसलिए अपने मत की कुछ न कुछ तो बात रखेंगे ही। तीसरा मुँह की वायु से वायुकायादि जीवों की रक्षा मुखवस्त्रिका बांधे बिना नहीं हो सकती, इसलिये सदैव बांधना योग्य ही है, यह निस्संदेह समझें ।
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महाशय ! आपके इन पण्डित रत्नविजयजी के लेख से तो आप और आपके साथी उनके बताये हुए सब प्रसंगों पर मुखवस्त्रिका नहीं बांधने के कारण अवश्य कुलिंगी ही हैं।
अपने माननीय आचार्य आदि के वाक्यों से अब भी आप को परभव का कुछ भय खाना चाहिए और अपने पकड़े हुए मिथ्या हठ को तिलांजलि देकर मुखवस्त्रिका मुँह पर बांधनी चाहिये । तथा अपने उपकारी सुसाधुओं की निन्दा करते कुछ शरमाना चाहिये । इसी में तुम्हारा हित है।
* मुँहपत्ति चर्चासार पृष्ठ ४० में मुखवस्त्रिका बाँधने के प्रसंग बताये हैं, उसमें अन्तिम कारण में मृतक ने "विगेरे” इस प्रकार आदि शब्द आया है। यह भी अन्य प्रसंगों को स्थान देता है ।
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