________________
**
मुखवस्त्रिका सिद्धि
१३
*****
"मोंढामांथी निकलेला पवनथी बहारना वायु कायनो
नाश थाय. "
इसी प्रकार इसी पृष्ठ के दूसरे कॉलम पंक्ति ७ से अपकाय की हिंसा भी बतलाते हैं, देखिये -
मुंहपत्ति न राखवाथी अपकायनो नाश
" वली लग लगाट वरसाद ज्यारे आवेछे त्यारे ऋण दिवसनी हेली पछीज बधां स्थान जलना जीवोथी वासित थई जाय, अने तेवी वखते मुंहपत्ति नहीं होवाथी उघाड़े मुखे बोलनारा मनुष्यो पोताने अहिंसक कहेवड़ावे तो पण असंख्यात अप् - कायना जीवोनो घात करनार ज थाय छे.'
""
(६) 'जेनीझम' नामक ग्रंथ जर्मन विद्वान् हेल्मुट ग्लाजेनाप द्वारा लिखित के भाषान्तर (जैनधर्म) में पृष्ठ ३४६ पंक्ति २ से लिखा है कि -
" वायुना जंतुनी हिंसा थाय नहिं, एटला माटे मोढे बांधवानी मुखपट्टी”
(जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर से प्रकाशित)
उक्त प्रमाणों पर से यह अच्छी तरह सिद्ध हो गया कि - मुँह की वायु से बाहर के सचित्त वायुकाय के जीवों की विराधना होती है।
अतः प्रथम कारण सिद्ध हो चुका, जो भाई (खास कर श्री ज्ञान सुन्दरजी) मुँह की वायु से वायुकाय की हिंसा नहीं मान कर उल्टी कुतर्के करते हैं, उन्हें इन प्रमाणों पर शांत चित्त से विचार करना चाहिये ।
Jain Educationa International For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org