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मुखवस्त्रिका सिद्धि
( उपरोक्त पत्र में कई जगह शाब्दिक अशुद्धियां है, पर चिट्ठी की यथा तथ्य नकल देने के कारण हमने उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया है।)
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(१०) साधुओं के प्राचीन चित्र जो मुंहपत्ति चर्चासार' में दिये हैं उनमें भी साधुओं के मुँह पर मुख - वस्त्रिका बन्धी हुई है। और प्राचीन कल्प सूत्र वारसा में भी इसी प्रकार के मुख वस्त्रिका मुख पर बांधे हुए चित्र हैं।
इतने पुष्ट और सबल प्रमाणों के होते हुए भी हमारे मूर्त्तिपूजक बन्धु सत्य एवं न्याय मार्ग के अनुकरण करने वालों पर अनुचित हमले करते हैं, यह सरासर अन्याय है।
मुखवस्त्रिका मुख पर बांधने के सम्बन्ध में मूर्त्तिपूजक आचार्य केवल इतना कह कर ही नहीं रुके हैं, किन्तु इससे भी आगे मृतक साधु (शव) के मुँह पर भी मुख - वस्त्रिका बाँधने का विधान बताते हैं, इस सम्बन्ध में भी बहुत से प्रमाणों में से केवल दो ही प्रमाण दिये जाते हैं । यथा -
( १ ) मयग कलेवरंहवित्ता कुंकुमाइहिं विलिंपित्ता य अवंगं चोलपट्टं परिहाविय, "पुत्तिं मुखे बंधीय " बीयं वत्थं हिट्ठा पत्थरिय, तइएणं उवरिं पाउणिय संथारे कडिए दोरिं वज्झइ । (साधु समाचारी) अर्थात् - मृतक शव को स्नान कराकर कुंकुम आदि से विलेपन करे और उल्टा चोलपट्टा पहिना के, "मुख - वस्त्रिका मुँह पर बाँधके" दूसरा वस्त्र नीचे बिछाकर और तीसरा वस्त्र संथारे पर ढांक कर कमर में डोरी बांधे ।
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