Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 57
________________ ३८ ** शंका-समाधान ********* (19) शंका - श्रीमान् ज्ञानसुन्दरजी ने आवश्यक सूत्र का अवतरण देकर जो हाथ में मुँहपत्ति रखना सिद्ध किया है, उसका क्या उत्तर है ? समाधान - श्री ज्ञानसुन्दरजी ने स्व० पूज्य श्री अमोलकऋषिजी महाराज से अनुवादित आवश्यक सूत्र के " कुइए कक्कराईए छीए" का अवतरण देकर यह सिद्ध करना चाहा है कि यदि मुखवस्त्रिका मुख पर होती, तो ऐसा प्रसंग ही क्यों आता ? इस विषय में आपको यह समझना चाहिए कि साधुओं को कितने ही प्रसंगों पर मुखवस्त्रिका मुंह से अलग भी करनी पड़ती है। जैसे भोजन करते समय, पानी पीते समय, दवाई लेते समय या अन्य ऐसे ही किसी प्रतिलेखना आदि प्रसंग पर मुखवस्त्रिका मुँह से दूर की हो, और हठात् बोलने आदि का काम पड़ जाने से, उस समय यदि खुले मुँह बोला गया हो, ऐसे ही रात्रि में निद्रा लेते प्रमादवश मुखवस्त्रिका मुँह से हट गई हो, और अचानक कभी ऐसा प्रसंग बना हो, उसके लिए यहाँ मिथ्या दुष्कृत्य दिया गया है। ऐसे प्रमाद के कार्यों का उदाहरण देकर हाथ में वस्त्र रखने की सिद्धि करना सत्य से सर्वथा दूर है। क्या आपको प्रमादी हालत के प्रमाण ही अभीष्ट हैं? (८) इसी प्रकार प्रत्याख्यान प्रसंग में आए हुए “अन्नत्थणा भोगेणं, सहसागारेणं” शब्द से भी जो भ्रम फैलाया गया है, उसके लिए भी सुन्दरजी को यही समझना चाहिए कि ऐसे प्रसंग प्रमादावस्था से उपस्थित होते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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