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शंका-समाधान
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समाज में वाहवाही प्राप्त करने की चेष्टा की है। पर शायद आप यह भूले हुए हैं कि अनाचार तो अनाचार (जो आचरण करने योग्य नहीं) ही है। जो इनका सेवन करेगा वह अनाचारी ही होगा। तथा इनका सेवन मुखवस्त्रिका के होते हुए भी हो सकता है। इसके लिए बाँधने न बाँधने का कोई प्रश्न नहीं हो सकता, क्योंकि हड्डी, माँस त्वचा आदि को सुख उपजाने के लिए जिस प्रकार तैलादि का मर्दन करना पूर्व के अनाचार में बताया है, वह किसी को दिखाने के लिए नहीं, पर शरीर को साता पहुँचाने के लिए है। ऐसे ही दन्तधावन भी मुँह और दाँतों को विशेष रूप से शान्ति पहुंचाने या पुष्टि करने के निमित्त करना अनाचार बताया है। इसमें मुँहपत्ति बाँधने व खोलने का प्रश्न ही कैसे उपस्थित हो सकता है? और जो काच में मुंह देखने के विषय में आपकी शंका हो तो यह भी निरर्थक है। क्योंकि यह तो मुखवस्त्रिका के बँधी हुई होते हुए भी हो सकता है। दूसरा जो अनाचार का सेवन करेगा वह प्रायः किसी के देखते तो करेगा ही नहीं, अगर गुप-चुप जिसे अनाचार सेवन करना है वह मुखवस्त्रिका रखकर या छोड़कर करे, इसकी चिन्ता हम क्यों करें? सूत्रकार ने तो ऐसा करना अनाचार बताया है जो छोड़ने योग्य है। अतएव अनाचारों के उदाहरण शुद्ध क्रिया में देकर भ्रम फैलाना सुज्ञजनों का कार्य नहीं है।
(१०) ___इसी प्रकार निशीथ सूत्र में मुँह व दाँत से वीणा नामक वादिंत्र जैसे बना कर बजाने के प्रायश्चित्ताधिकार में भी कुतर्क की गई है, यह भी सर्वथा अनुचित है। क्योंकि यह मुखवस्त्रिका के होते हुए भी
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