Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 62
________________ मुखवस्त्रिका सिद्धि (१३) शंका - ज्ञानसुन्दरजी ने लिखा है कि दिन भर डोरा डाल मुंहपत्ती बांधनो वालो को शासन-भंजक, निन्हव कुलिंगी समझते है । तो इस विषय में आप हमेशा मुंहपत्ती मुंह पर बांधना, और वह भी डोरे से, क्या जैन लिंग के लिए इसको पृथक् पृथक् सिद्ध कर सकते हैं? ४३ *** समाधान - हां, महाशय ! हम सिद्ध तो कर चुके हैं, और फिर भी कर सकते हैं। पर ज्ञानसुन्दरजी ने हमारी समाज पर जो प्रेम एवं सहृदयता प्रकट की है, वह तो उनके योग्य ही है। क्योंकि हमारी समाज में ये महानुभाव रह चुके हैं। इसीके अन्न जल से इनकी देह बढ़ी है। तीसरा ज्ञान - दान भी इन्हें इसी समाज के खजाने से प्राप्त हुआ है। यदि इसके उपलक्ष्य में ज्ञानसुन्दरजी अपशब्द -गालियाँ प्रदान नहीं करें तो क्या करें? कुछ बदला तो चुकाना ही चाहिये । महाशय ! आपको ध्यान रहे कि ज्ञानसुन्दरजी जो कुछ कह रहे हैं वो केवल आन्तरिक द्वेष के कारण ही । क्योंकि साधुमार्गीय समाज से इन महाशय को चरित्रहीनता के कारण बिदाई मिली है। उस वैर का बदला गाली प्रदान द्वारा नहीं लें तो फिर क्या करें ? अब आप अपने प्रश्न का उत्तर क्रम से लीजिये दिन भर मुखवस्त्रिका बाँधना - जब कि हमेशा मुखवस्त्रिका हाथ में रखने वालों के मान्य सिद्धान्तों में मुँह की वायु से बाहर की वायुकाय की हिंसा होना सिद्ध हो चुका है । और मुख पर मुखवस्त्रिका बाँधना भी सिद्ध हो चुका है। फिर ऐसी शंकाओं के लिये तो स्थान ही कहाँ ? फिर भी प्रकरण की Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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