Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 61
________________ ४२ शंका-समाधान *** सिद्धि मानली है । यह प्रत्यक्ष में भाषा समिति विषयक अज्ञता सिद्ध करती है। इनको यतना पूर्वक बोलने के विधानों के शास्त्रों में स्पष्ट एवं विस्तार पूर्वक जो कथन हैं उन्हें देख लेना चाहिये। उससे मालूम हो जायगा कि यत्ना पूर्वक बोलना किसे कहते हैं । इन्होंने इसका अर्थ करने में जो अपनी सङ्कचित वृत्ति प्रकट की है, वह हास्यास्पद ही है। इन्हें यतना पूर्वक बोलने का अर्थ इस प्रकार समझना चाहिए कि जिससे वो अर्थ सिद्धान्त निर्दिष्ट सभी विधानों को लागू हो सके। यदि संक्षेप में इस वाक्य का अर्थ किया जाय तो निम्न प्रकार से हो सकता है: १. यत्नापूर्वक वह भाषा कि जो वीतराग वचनों से • सम्मत होकर जैन शासन का प्रभाव फैला सके। हो । २. यत्नापूर्वक वह भाषा कि जिससे किसी भी प्राणि का अनिष्ट न हो और न किसी के हृदय में चोट पहुँचे । ३. यत्नापूर्वक वह भाषा कि जिससे गुरुओं का निरादर न - - - ४. यत्नापूर्वक वह भाषा कि जिससे संसार रत जीवों का उत्थान और कल्याण हो । रखना कदापि सिद्ध नही हो सकता । Jain Educationa International ५. यत्नापूर्वक वह भाषा जो - अमङ्गल में मङ्गल, अशांति में शांति एवं क्लेश के स्थान पर संप स्थापन करे । इत्यादि अनेक अर्थ हो सकते हैं। ऐसे अनेक शुभ अर्थ प्रकाशक शब्द केवल अपने मत की सिद्धि करने के लिए मनमाना संकुचित अर्थ कर डालना प्रत्यक्ष पक्ष व्यामोह है । अतएव "जयं भुञ्जन्तो भासन्तो" शब्द से हाथ में वस्त्र For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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