Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 51
________________ ३२ शंका-समाधान ************************************** जो जैन साधुत्व की प्रधान परिचायिका मुखवस्त्रिका है, उसे नहीं मानना कहाँ की बुद्धिमानी है? ___इस व्यर्थ की शंका में एक बात और भी ध्यान देने योग्य है, वो यह कि उच्छ्वासादि सात प्रसंगों में “बोलने' का तो कोई प्रमंग भी नहीं बताया है। इसलिये आपके मतानुसार तो खुले मुँह ही बोलना चाहिए। क्योंकि इससे तो आपका कर वस्त्र (हाथ में रहने वाला वस्त्र) भी उड़ जाता है। इसलिये कुतर्के छोड़ कर जरा सरल बुद्धि से इस प्रकार समझो कि मुख पर मुखवस्त्रिका तो अवश्य रहती ही है, पर उच्छ्वासादि प्रसंग पर मुख के वायु का वेग अत्यन्त प्रबल हो जाता है, उस समय मुखवस्त्रिका के रहते हुए भी पूर्ण यना नहीं हो सकती। इसलिये ऐसे प्रसंगों पर हाथ से विशेष यत्ना करना ही उचित है। ज्ञानसुन्दरजी! प्रसन्न होने की बात तो जब होता कि आचारांग में बोलने का प्रसंग भी बताया गया होता, व साथ ही यत्ना के स्थान "पाणिणा" के साथ साथ पाणिणा-मुहणंतगेण, या मुहणंतगेण ही होता। पर उस समय हमारे हस्तवस्त्री महानुभावों का सद्भाव ही नहीं था, अन्यथा ऐसे अवसरों पर ये कहाँ चूकने वाले थे? अतएव सिद्ध हो गया कि आचारांग का नाम लेकर हाथ में मुखवस्त्रिक रखना सर्वथा अनुचित है। (३) शंका - श्री ज्ञानसुन्दरजी ने हाथ में मुखवस्त्रिका रखने के पर में भगवती सूत्र का प्रमाण दिया है, इसका क्या उत्तर है? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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