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सप्रमाण सिद्धि
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(१) कण्णेठ्ठियाए वा मुहणंतगेणं वा विणा-इरियं पडिक्कमे, मिच्छुकडं पुरिमटुं। .
(महानिशीथ सूत्र अ० ७) ___ अर्थात्-कान में डाली हुई मुख-वस्त्रिका के बिना या सर्वथा मुख-वस्त्रिका के बिना इरियावही क्रिया करने पर साधु को मिथ्या दुष्कृत या पुरिमार्द्ध प्रायश्चित्त आता है।
(२) देवसूरिजी समाचारी ग्रन्थ में लिखते हैं कि - "मुख-वस्त्रिका प्रतिलेख्य मुखेबध्वा" .
अर्थात् - "मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना कर मुँह पर बाँध कर"
(३) भुवनभानु केवली के रास में रोहिणी के अधिकार वाली ६६ वीं ढाल में -
"मुँहपतिए मुखबांधीनेरे" तुमे बेसो छो जेम,
तिम मुखे उंचो देइनेरे, बीजे बेसाए केम ।। ३ ।।
अर्थात् - रोहिणी कहती है कि - हे गुरुणिजी! जिस प्रकार मुख-वस्त्रिका मुख पर बाँधकर तुम बैठती हो, उस प्रकार मुख पर हुंचा देकर दूसरे से कैसे बैठा जाय?
(४) हरीबल मच्छी रास के-खण्ड २ ढाल ६ में - साधुजन मुख मुँहपत्ति, बाँधी है जिन धर्म।
(५) विचार रत्नाकर में - कण्ठे सार सरस्वती, हृदि कृपा नीति क्षमाशुद्धयो। "वक्त्राब्जे मुख-वस्त्रिका" सुभगता, काये करे पुस्तिका। ____अर्थात् - (गुरु के वर्णन में) उनके कंठ में सरस्वती विराजमान है, हृदय में दया, नीति, क्षमा और पवित्रता है "मुख पर मुखवस्त्रिका है" शरीर में सुभगता और हाथ में पुस्तक है।
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