Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 35
________________ १८ सप्रमाण सिद्धि ************** ***** *** **************** (१) कण्णेठ्ठियाए वा मुहणंतगेणं वा विणा-इरियं पडिक्कमे, मिच्छुकडं पुरिमटुं। . (महानिशीथ सूत्र अ० ७) ___ अर्थात्-कान में डाली हुई मुख-वस्त्रिका के बिना या सर्वथा मुख-वस्त्रिका के बिना इरियावही क्रिया करने पर साधु को मिथ्या दुष्कृत या पुरिमार्द्ध प्रायश्चित्त आता है। (२) देवसूरिजी समाचारी ग्रन्थ में लिखते हैं कि - "मुख-वस्त्रिका प्रतिलेख्य मुखेबध्वा" . अर्थात् - "मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना कर मुँह पर बाँध कर" (३) भुवनभानु केवली के रास में रोहिणी के अधिकार वाली ६६ वीं ढाल में - "मुँहपतिए मुखबांधीनेरे" तुमे बेसो छो जेम, तिम मुखे उंचो देइनेरे, बीजे बेसाए केम ।। ३ ।। अर्थात् - रोहिणी कहती है कि - हे गुरुणिजी! जिस प्रकार मुख-वस्त्रिका मुख पर बाँधकर तुम बैठती हो, उस प्रकार मुख पर हुंचा देकर दूसरे से कैसे बैठा जाय? (४) हरीबल मच्छी रास के-खण्ड २ ढाल ६ में - साधुजन मुख मुँहपत्ति, बाँधी है जिन धर्म। (५) विचार रत्नाकर में - कण्ठे सार सरस्वती, हृदि कृपा नीति क्षमाशुद्धयो। "वक्त्राब्जे मुख-वस्त्रिका" सुभगता, काये करे पुस्तिका। ____अर्थात् - (गुरु के वर्णन में) उनके कंठ में सरस्वती विराजमान है, हृदय में दया, नीति, क्षमा और पवित्रता है "मुख पर मुखवस्त्रिका है" शरीर में सुभगता और हाथ में पुस्तक है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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