Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ मुखवस्त्रिका सिद्धि ** कहते हैं। शाब्दिक अर्थ को देखते हुए तो अन्य किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं रहती, फिर भी अपनी पूर्व की प्रतिज्ञा का पालन करने और भद्र जनों की शंकाओं का निराकरण करने के लिए, इस विषय में हमारे मूर्तिपूजक बन्धुओं के मान्य ग्रन्थों के ही प्रमाण दिये जाते हैं। १७ - (१) 'विशेषावश्यक भाषान्तर भाग २' आगमोदय समिति से सम्वत् १९८३ में प्रकाशित की प्रथमावृत्ति पृ० ३०५ पंक्ति १६ में भाष्य की २५७७ वीं गाथा के तीसरे चरण में “मुह पुत्तिया ' शब्द आया है उसका अर्थ भाषान्तरकार पृ० ३०६ पंक्ति ११ में करते हैं कि - "मुखे बाँधवाने मुख - वस्त्रिका राखवी " (२) मूर्तिपूजक विद्वान् कवि ऋषभदासजी ने "हितशिक्षानो रास" द्वितीयावृत्ति पृष्ठ ३८ पंक्ति १३ में लिखा है कि - "मुखे बांधि ते मुख पति" इन दो प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका कि - मुख - वस्त्रिका वही है जो मुँह पर बाँधी जाय । जब कि - मुख- वस्त्रिका शब्द का अर्थ मुँह पर बाँधने का वस्त्र विशेष सिद्ध हो गया, तब इस विषय में कुछ भी शंका नहीं रहने पाती। अतएव आचारांगादि अङ्गोपाङ्ग सूत्रों में अनेक स्थानों पर आये हुए मुख - वस्त्रिका शब्द का अर्थ भी उक्त प्रमाणों से मुँह पर बाँधने का वस्त्र सिद्ध हो चुका है। मुख - वस्त्रिका का मुँह पर बाँधना सूत्र सम्मत होते हुए भी अब हम अपने प्रकरण की विशेष सिद्धि के लिए कुछ प्रमाण मूर्तिपूजकों (हाथ में वस्त्र रखने वालों) के मान्य ग्रन्थों के देते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104