Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 31
________________ १४ मुखवस्त्रिका जैन साधुओं का.... . ************************************** (ख) मुखवरित्रका जैन साधुओं का लिंग (चिन्ह) है गत प्रकरण में हम वायुकाय की हिंसा मुख की वायु द्वारा होती है, यह सिद्ध कर आये हैं। अब इस प्रकरण में-मुख-वस्त्रिका बाँधने के दूसरे कारण पर विचार करते हैं। संसार में जितने मत मतान्तर हैं, उनके साधुओं-प्रवर्तकों के खास कोई न कोई चिन्ह हुवा ही करता है, और ऐसे चिन्हों से वे संसार के अन्य मतों से अपनी भिन्नता जाहिर कर सकते हैं। कोई पीत वस्त्र धारण करता है तो कोई रक्त-एवं भगवां। कोई लम्बा तिलक करता है तो कोई आडा। कोई त्रिशूल रखता है तो कोई मयूर पंख। मतलब यह कि हर एक धर्म के प्रवर्तकों का कोई न कोई स्वतंत्र लिंग दर्शक चिन्ह होता ही है। इसी प्रकार जैन साधुत्त्व का परिचय देने वाला मुख्य लिंग, मुखवस्त्रिका है। अन्य धर्मावलम्बियों के चिन्ह सिवाय परिचय देने के किसी अन्य काम में प्रायः नहीं आते हैं, पर जैन शासन में साधुओं का यह चिन्ह (मुखवस्त्रिका) जीव रक्षा के उपयोग में भी आता है। और जैन लिंग का भी परिचय देता है। इसके लिए यहां किंचित् प्रमाण दिये जाते हैं - (१) सावचूरि यति दिन चर्या:बत्तीसंगुलदीहं रयहरणं, पुत्तियाय अद्धेणं। जीवाण रक्खणट्ठा "लिंगट्ठा" चेव एयंतु॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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