Book Title: Mukhvastrika Siddhi
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 28
________________ मुखवस्त्रिका सिद्धि ११ ११ ********** **************************** "मुखादिवातैर्बाध्यन्ते" (अर्थ) मुख आदिना पवनथी पण वायना जीवो बाधा पामे छे. (जैन प्रवचन वर्ष ४ अङ्क ३५ पृष्ठ ४०७ कोलम २) (३) सागरानन्द सूरिजी “दीक्षानुं सुन्दर स्वरूप” में लिखते हैं कि - ___ 'वचननी प्रवृत्ति मां थती हिंसाने निवारवा मुंहपत्ति नी जरूर छे." (पृष्ठ ३१ पं०७) (४) पुनः सागरानन्द सूरिजी - मूर्तिपूजक प्रतिकार समिति द्वारा - अहमदाबाद से प्रकाशित “जैन सत्य प्रकाश' मासिक पत्रिका में “दिगम्बरों नी उत्पत्ति' नामक लेख-माला में प्रथम वर्ष के अङ्क ७ पृष्ठ २०१ के दूसरे कालम में लिखते हैं कि - ____ मुख-वस्त्रिकाना अभावे भाषानी सावधता - "वली जेओ मुख-वस्त्रिका जेवी आवश्यक उपधी भाषा समितिना वखते उपयोगी चीज माननारा नथी, तेओ वाउकाय रूपि एकेन्द्रियनुं रक्षण तेमज डांस मच्छर विगेरे उड़ता जीवो रूपि त्रसकायर्नु रक्षण केवी रीते करी शके? मुख-वस्त्रिका बिना बोलवाथी-वायु विराधना केम? ___"एम नहिं कहेवू के भाषा वर्गणाना पुद्गलो चउफरसी होवाथी आठ स्पर्श वाला वाउकाय विगेरेनी विराधना केम करी शके? केमके शब्द वर्गणाना पुद्गलो जे भाषा पणे परिणमे छे ते जेओ के चउस्पर्शी छे तो पण तेवी रीते परिणमवू नाभीथी उठीने कोष्ठमां हणाइने वर्णस्थानोमां फरशीने नीकलता पवन द्वाराए ज बने छे, अने ए वात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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