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मुखवस्त्रिका सिद्धि
हस्ते पात्रं दधानाश्च, तुण्डे वस्त्रस्य धारकाः । मलिनान्येव वासांसि धारयन्तोऽल्पभाषिणः
शिवपुराण ज्ञान संहिता अ. २१ श्लोक २५ इस श्लोक में बताया गया है कि हाथ में पात्र धारण किये हुए और मुँह पर वस्त्र धारण करने वाले, मलिन वस्त्रों को धारण किये हुए, थोड़े बोलने वाले जैन साधु होते हैं।
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इस श्लोक के दूसरे चरण में " तुंडे वस्त्रस्य धारकाः शब्द ही बता रहा है कि मुँह पर वस्त्र धारण करने वाले ही जैन साधु होते हैं, हाथ में रखने वाले नहीं । ऐसे स्पष्ट प्रमाण के होते हुए भी, क्या, मुखवस्त्रिका मुँह पर बाँधने वाले कभी हार सकते हैं? कदापि नहीं। यहां स्पष्ट सिद्ध हो गया कि नाभा में गणिराज की
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ही शानदार जीत हुई थी। और अपने प्रतिद्वंदी की इस जीत को सहन नहीं कर सकने एवं अपनी हार को छुपाने के लिए ही इस नूतन फैसले की सृष्टि हमारे मूर्तिपूजक बन्धुओं को करनी पड़ी थी ।
(२)
मुँहपत्ति रखने के कारण
प्रथम प्रकरण में हम यह दिखा चुके हैं कि - मुख- वस्त्रिका विषयक नाभा शास्त्रार्थ में मुख - वस्त्रिका मुँह पर बांधने वाले गणिवर्य ( साधुमार्गीय समाज) की विजय और हाथ में रखने वाले ( मूर्तिपूजक समाज) वल्लभविजयजी की पराजय हुई है। अब इस प्रकरण में हम
दिगम्बर ?” नामक पुस्तक के पृष्ठ १६ पंक्ति ८ में भी छंपा है।
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यह श्लोक - श्री विद्याविजयजी द्वारा लिखित " श्वेताम्बर प्राचीन के
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