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मुंहपत्ति रखने के कारण
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मुख-वस्त्रिका के मुँह पर बांधने के मुख्य कारण बताकर उनको
सप्रमाण सिद्ध करते हैं ।
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मुखवस्त्रिका के मुख पर बांधने में मुख्यतः दो कारण हैं (१) वायुकायादि जीवों की रक्षा ।
(२) जैन साधुत्त्वदर्शक "लिंग” (चिन्ह) |
इन दो कारणों की सिद्धि के लिए हम मूर्तिपूजक समाज के मान्य ग्रन्थों और लेखों के ही प्रमाण देते हैं । पाठक वर्ग धैर्य पूर्वक पढ़ कर निर्णय करें।
(क)
वायुकायादि जीवों के रक्षणार्थ मुख - वस्त्रिका की
आवश्यकता
कितने ही हाथ में मुख - वस्त्रिका रखने वाले हमारे बन्धु अब तक यह कहते आ रहे हैं कि - मुख की वायु से वायुकायिक जीवों की हिंसा नहीं होती, पर उनका यह कथन निम्न प्रमाणों से बाधित सिद्ध होता है, देखिये -
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(१) हेमचन्द्राचार्य कृत योगशास्त्र के भाषान्तर में लिखा है कि- " मुँहपत्ति पण उडीने मुखमां पड़तां जीवो तथा मुखना उष्ण श्वासथी बाहरना वायुकाय जीवोनी विराधना टालवा माटे छे, तेम मुखमा पडती धूलने पण अटकाववा माटे छे”
( भीमसिंह माणेक द्वारा प्रकाशित और निर्णयसागर प्रेस से मुद्रित वि० सं० १९५५ पृष्ठ २६० पं० २७ )
(२) जैन प्रवचन साप्ताहिक के प्रवचनकार श्रीराम विजयजी योग शास्त्र की बारह भावनाओं में से तीसरी संसार भावना के
विवरण में वायुकाय की वेदना में लिखते हैं कि
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