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मिथ्याभिमान महिमा
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की, जिसके प्रत्युत्तर में उसी समय श्रीमान् कल्याणमलजी साबह बैद ने सम्वत् १९६२ के इस मन-घड़न्त फैसले की पॉलिसी का उद्घाटन करने वाले ट्रेक्ट “पीताम्बरी पराजय'' की पुनः आवृत्ति प्रकाशित कर फैलते हुए तिमिर को रोक दिया।
तदुपरान्त इस पीताम्बरी पराजय नामक ट्रेक्ट के उत्तर में 'रत्न प्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला, फलौदी (मारवाड़)' से “नाभा नरेश का असली फैसला' नामक एक चौदह पेजी ट्रेक्ट जो अजमेर से मुद्रित हुआ है, प्रकट किया गया। पर जब हम इस फलौदी के कहे जाने वाले असली फैसले पर विचार करते हैं तो-यह प्रमाणित होता है कि - "अजब रफ्तार बेढङ्गी जो पहिले थी, वो-अब भी है।" लेखक महाशय ने 'पीताम्बरी पराजय' का उत्तर नहीं देकर सिर्फ उल्लिखित नकली फैसले की पुनरावृत्ति की है और साथ में अपने पक्ष की विजय होने के सम्बन्ध में असत्य डींगें मार कर अपने मुँह मियां मिठू बने हैं ।
__ जब कि-नकली फैसले का उत्तर पहले पंजाब से व बाद में अजमेर से निकल चुका है, और वह उत्तर के लिए ज्यों का त्यों रक्खा हुआ है, जिसका कि वास्तविक उत्तर (जो उनके पास है ही नहीं) अभी तक (सिवाय नकली फैसले की पुनरावृत्ति के) नहीं मिला। ऐसी सूरत में इस विषय में अधिक प्रयास करने की आवश्यकता ही नहीं है। तथापि भद्रजनों की शङ्काओं का समाधान एवं वस्तुस्थिति की सत्यता को विशेष रूप से सिद्ध करने के लिए कुछ नकली फैसले पर विचार कर मुख-वस्त्रिका का मुख पर बाँधना सिद्ध कर दिखाते हैं।
* इस विषय का उत्तर एक स्वतंत्र ट्रेक्ट (जय पराजय विषय) से देने का विचार है।
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