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( 18 ) पूर्व-कृत-कर्म अनेक प्रकार,
"दुखों से पीड़ित है संसार जीव को कसे कुडली मार,
मापको करना जीवोद्धार बद्ध-कर्मों का तप से क्षार,
करें तप निज-पर हित सूखकार
सिद्ध बन करें भवोदधि पार ॥" करे जब, तब हो जीवोद्धार ।
( 19 ) ( 15 )
सकल इच्छानों को तब मार,
प्रभू ने त्याग दिया घरबार, लोक है चौदह राजु प्रमान,
तजा परिजन, पुरजन का प्यार, उसी में जीव फिरे बिन ज्ञान,
मात त्रिशला का लाड़-दुलार ॥ सुलभ हैं यद्यपि जन-धन-मान,
( 20 ) बहुत दुर्लभ है सम्यक्ज्ञान ॥
पालकी चन्द्रप्रभा मनुहार,
तभी ले आये असुर कुमार, ( 16 )
ध्यान, तप करके विविध प्रकार, निकलने का नहिं दूजा द्वार,
ज्ञातृवन-खण्ड गये सुकुमार ।। धर्म ही करे भवोदधि पार,
( 21 ) भावना बारह उक्त प्रकार,
महामानी-मन्मथ को मार,
करों से काले केश उपार, प्रभू मन उपजी बारम्बार ॥
कृष्ण दसमी मगसिर शशिवार, ( 17 )
दिगम्बर मुनि दीक्षा ली धार ।।
( 22 ) एक दिन बैठे वीर कुमार
अधिकतर कर एकांत विहार, करहिं जब मन में सोच विचार
परीषह सहकर विविध प्रकार, देव लोकांतिक प्रभु के द्वार
तिरे भव-सिंधु अनेकों तार पाए तब बोध दिया सुखकार
जयतु-जय-जय वीर कुमार वीर कैवल्य
( 3 ) जग की पीड़ा से हुए विकल,
पथ की बाधाएं सकीं न छल तो छोड़ सभी कुछ पड़े निकल,
तप किया घोर अरु रहे अचल जिस भांति मिले जग-दुख का हल,
सर्दी, गर्मी, वर्षा का जल खोजूगा, निश्चय किया अटल ।।
सब झेला, तदपि रहे निश्चल ( 2 )
( 4 ) वय तीस वर्ष ही थी केवल,
था प्रात्म-तेज का अतुलित बल जब होती है कामना प्रबल,
बिन मार्ग मिले थी तनिक न कल प्रति करता है मन्मथ विह्वल,
लगता था जिन जीवन निष्फल ऐसे में छोड़े भोग सकल ।।
परु प्रायु घट रही थी प्रतिपल
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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