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( 17 ) वाणी प्रभु खिरी मची हलचल मिथ्यामत-वादी गये दहल गिर गये सभी बालुका महल पशु-बलि प्रादिक नहिं सकती चल
( 18 ) दुष्टों को लगते सुजन गरल विहँसे जिनके थे हृदय सरल भविजन को प्राप्त हुना संबल प्रभु वाणी सुन भव किया सफल
( 19 ) जग में नहिं कोई वस्तु प्रटल पर्यायें क्षण-क्षण रहीं बदल फिर कैसा मद, काहे का बल भव-बन में फिरता जीव विकल
( 20 ) जग-भोग भयानक है दलदल जितना खींचो, धसता पग तल तप, ज्ञान-ध्यान से जाते जल जब कर्म, मिले तब मोक्ष महल
( 21 ) दश धर्म, विनय, सत, संयम से व्यवहार लोक का सकता चल यों मिले बहुत प्रश्नों के हल जिनमत की फैली कीर्ति धवल
( 22 ) प्रभु तीन दशान्दी पैदल चल जन-जन को बोध दिया निर्मल संसृति अशोक जब हुई सकल प्रभु भी जा तिष्ठे मोक्ष महल
एक पद कजरी बनारसी-ताल त्रिताल हमारी अर्ज सुनो महावीर । निशि वासर प्रभु ध्यान तुम्हारो, चरणन में चित लाग्यो हमारो।
जब ते मरत नेना निरखी,
दूर भई सब पीर हमारी०॥ हाथ जोड़ मैं शीस नमाऊ, पुनि पुनि प्रभु ये अवसर पाऊ।
अरज प्रभु इस व्यथित हृदय की कटे करम जंजीर हमारी॥
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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