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युगों युगों तक अमर रहेगा महावीर संदेश तुम्हारा
* पं० अनूपचन्द न्यायतीर्थ, जयपुर
तुमने जग की अस्थिरता को देखा, उस पर ध्यान दिया। झाँक झांक अपने अन्तर में
उसका गहरा मनन किया है । फिर वाणी में हुई प्रस्फुटित वह चिंतन की अनुपम धारा॥
कौन किसी का करने वाला हरने वाला कभी बना है कर्ता हर्ता स्वयं पाप ही
स्वामी स्वयं आप अपना है ।। पूर्ण स्वतन्त्रता, पराश्रित होकर क्यों फिरता है मारा मारा।
माता पिता और जन परिजन बांधव मित्र सुता सुत नारी इनके लिये पाप क्या करता
नहीं किसी के सगै अनारी कर्मों का फल तुम्हें अकेले अरे ! भोगना होगा सारा ।।
हिंसादिक पापों से बचकर सत्य अहिंसा को अपनायो स्याद्वाद और अनेकांत का
कितना बड़ा महत्व, समझाओ। सर्वधर्म समभाव समन्वय, सीखो यह उन्नति का नारा॥
प्राग्रह और परिग्रह दोनों जीवन को अति दुखी बनाते घृणा ईर्षा द्वेष कलुषता
मानवता का पतन कराते इनसे बचो बचाओ सबको, इस ही में ही उत्थान तुम्हारा
युगों युगों तक अमर रहेगा महावीर संदेश तुम्हारा ।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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