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द्वितीय
जनहित में भगवान् महावीर
* श्री जिनेन्द्र कुमार सेठी, जयपुर
जनहित में महावीर :
आज सारा संसार अशान्ति के कगार पर खड़ा आज सारा संसार प्रशान्ति व असन्तोष के है । उसका कारण हिंसा है। आज महावीर के कगार पर खड़ा है । चारों ओर अशांति ही अशान्ति उपदेश अहिंसा का संसार के समस्त प्राणी माने तो हैं। भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए संघर्ष व अनेक देशों में हो रहे युद्ध बंद हो जाये जिससे कि पारस्परिक ईर्षा के कारण मानव ही मानव के जो धन विनाशकारी युद्ध के हथियारों; रक्षा पर खून का प्यासा हो रहा है। महावीर की जन्मभूमि खर्च समाप्त हो जाये और वह धन लोगों की भलाई बंगाल व निकटवर्ती राज्य बगाल में वीभत्स हत्या- के लिए लगाया जा सकता है। देशों के भीतर अनेक काण्डों का जोर है । अनेक देशों के मध्य युद्ध हो दंगे होते हैं वे समाप्त हो जाये जिससे कि व्यर्थ में रहा है। विश्व तृतीय विश्व युद्ध की ओर जा रहा ही अनेक प्रादमियों की हत्या हो जाती है, बेघरबार है । देशों के प्रदर राजनीति, धार्मिक, जातीय दंगे हो जाते हैं, जो प्रादमी रोज कमाता है रोज खाता हो रहे हैं । अाज संसार में जो लगभग 21 हजार है वह दंगे होने के कारण नहीं कमा पाता जिससे वर्ष पूर्व हो रहा था वही हो रहा है। प्राज भी वह खा नहीं पाता है। महावीर के उपदेश उतने ही जनहितकारी है भारत में प्राज वन्य जीव जन्तु कम होते जा जितने की आज से 23 हजार वर्ष पूर्व महावीर ने रहे है इसका कारण है शिकार यानि हिंसा । आज कहे थे। महावीर भगवान के उपदेश ही अाज अहिंसा के उपदेश को संपार के समस्त प्राणी संसार को शान्ति के मार्ग पर ला सकते हैं। मानें तो जो बेगुनाह जानवरों का शिकार किया महावीर भगवान के उपदेश कितने जनहितकारी हैं जाता है, मांस खाया जाता है वह बंद हो सकता उसका वर्णन निम्नलिखित है:
है और समाज को पशुधन से काफी आर्थिक लाभ महावीर के उपदेश
हो सकता है। मास से खाने से जो जानवर की 1. अहिंसा 2. अपरिग्रह 3 सत्य 4. प्रचौर्य बिमारी हो जाती है वह अगर कोई मांस नहीं 5. ब्रह्मचर्य ।
खायेगा तो वे बीमारिया नहीं होगी। अहिंसा : अनेक धर्माचार्यों ने कहा कि किसी अतएव प्राज संसार में महावीर के उपदेशों में जीव को नहीं मारना अहिंसा है। लेकिन महावीर खासकर अहिंसा काफी जनहितकारी है। इससे भगवान् ने तो यहां तक कहा कि किसी को बुरे या हमें काफी लाभ हो सकता है। कटु वाक्य जिससे किसी जीव को या प्राणी को ठेस अपरिग्रह : हम कोई गड्ढा खोदते हैं तो एक पहुचे वही हिंसा है।
तरफ मिट्टी का ढेर लग जाता है दूसरी ओर गढे 1-112
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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