Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1977
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur
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59. एन्शियन्ट इण्डिया एज डिस्क्राइब्ड बाय मैगस्थनीज एण्ड एरियन, कलकत्ता 1926
पृष्ठ 97-98 60. अन्सलेसन भाव द फेग्मेन्टस भाव द इण्टिया प्राव मंगस्थनीज, पान, 1846, पृष्ठ 105 61. चउहि अट्टाहिं लोअं करेइ । मूल
__ वृत्ति-तीर्थकृतां पंचमुष्टिलोच सम्भवेऽपि अस्य भगवतश्चमुमुष्टिक लोचगोचरः श्रीहेमाचायः कृत ऋषभचरित्राद्यभिप्रायोऽयं प्रथमेक्या मुष्ट्या श्मश्रु कूय॑र्योचे तिसृभिश्च शिरोलोचे कृत एका मुष्टिमवशिस्यामारणा पवनान्दोलितां कनकावदातयोः प्रभुस्कद्ययोरुपरि लुठन्तोमरकतोपमानभमाविभुतीं परमरमसीयां वीक्ष्य प्रमोदमानेन शक्रेण भगवन! मह्यमनुग्रहं विधाय ध्रियतामिय मित्थमेवेति विज्ञप्ते भगवताऽपि सा तथैव रक्षितेति । न ह्यकान्तभक्तानां याच्यामनुग्रहीतारः खण्डयन्तीति"
-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति व संस्कार 2,सू. 30 62. केश्यग्नि केशी विषं वित्ति रोदसी। केशी विश्वं स्वर्ट शे केशीदं ज्योति रुच्यते ।।
-ऋग्वेद 10/11/136/D 63. ककर्दवे वृषभो युक्त, प्रासीदवावचीत्सार चिरस्य केशी दुधेयुक्तस्य द्रवत: सहानस ऋच्छान्तिष्मा निष्पदो मुद्गलानीम् ।
-ऋग्वेद 10/9/102/6 64. ऋग्वेद 1/24/190/1, ऋग्वेद 2/4/33/15, ऋग्वेद 5/2/28/4, ऋग्वेद 6/1/1/8, - ऋग्वेद 6/2/19/11, ऋग्वेद 10/12/166/1, 65. महाभारत शान्तिपर्ण 227/13 66. अथ देवासुरं युद्धमभूद वर्षशतत्रयम् ।
-मत्स्यपुराण 24/35 67. अशक्तः पूर्वमासीस्त्वं कथंचिच्छक्ततां गतः । कस्त्वदन्य इमां वाचं सुक्ररां वक्तुमर्हति ।।
-महाभारत शान्तिपर्व 227/22 68. देवासुरमभूद् युद्ध, दिव्यमब्दशतं पुरा। तस्मिन् पराजिता देवा दैत्यद्धार्द पुरागमः ।।
-विष्णुपुराण 3/17/7 69. महाभारत, शान्ति पर्व 227/49-54 70. महाभारत, शान्ति पर्व 227/59-60 71. नर्मदासरितं प्राप्य स्थिता दानवसत्तमा ।
-~-पद्मपुराण 13/412
2-16
महावीर जयन्ती स्मारिका 71
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