Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1977
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 241
________________ 8. द्विजातय: सवर्णासु, जनयन्त्यव्रतांस्तु तान् । तान् सावित्री परिभ्रष्टान् बाह्यानीति विनिर्दिशेत् । -- मनुस्मृति 10/20 9. हीना वा एते । हीयन्ते ये व्रात्यां प्रवसन्ति । षोडशो वा एतत् स्तोमः समाप्तुमर्हति । 10. व्रात्यान् व्रात्यतां श्राचारहीनतां प्राप्य प्रवसन्तः प्रवासं कुर्वतः । -- ताण्ड्य महाब्राह्मण सायण भाष्य 11. कञ्चिद् विद्वत्तमं महाधिकारं, पुण्यशीलं विश्वसंमान्यं । ब्राह्मण विशिष्टं व्रात्यमनुलक्ष्य वचनमिति मंतव्यम् ॥ 12. वही 15 / 1 /1/1 13. व्रात्य प्रासीदीयमान एव स प्रजापति समैरयत् । 14. सः प्रजापतिः सुवर्णमात्मन्नपश्यन् । वही 15/1/1/3 15. अथर्ववेदीयं व्रात्यकाण्डं पृ. । । 16. वैदिक साहित्य और संस्कृति ए. 229 17. बियते यद् तद्व्रतम्, व्रते साधु कुशले वा इति व्रात्यः । ' -- अथर्ववेद 15/1/1/1 सायरण भाष्य -- प्रथर्थवेद 15/1/1/1 18. Vratya as initiated in Vratas. Hence Vratyas means a person who has voluntarily accepted the moral code of vows for his own spiritual discipline. --By Dr. Habar 19. The Sacred Books of the East vol. XXII uitr. p.24 It is therefore probable that the Jainas have borrowed their on vows from Brahamans, not from Buddhists. 20. संस्कृति के चार अध्याय पृ. 125 21. 22. सः उदतिष्ठत् सः प्रतीचीं दिशमनुव्यचलत् ॥ 23. सः उदतिष्ठत् सः उदीचीं दिशमनुव्यचलत् । 24. दशवैकालिक चूलिका 2 गा. 11 । 25. विहार चरिया इसिणं पसत्था । -- दशवैकालिक चूलिका 2 गा. 5 26. "The Religion and philosophy of Atharva veda" Vratyas were outside the pale of the orthodox Aryans. The Atharva veda not only admitted them in the Aryan fold but made the most righteous of them, highest divinity. -FI. Sinde सः उदतिष्ठत् स प्राचीदिशमनुव्यचलत् । अथर्ववेद 15/1/2/1 2-74 27. ऋषभदेव : एक परिशीलन -- देवेन्दमुनि शास्त्री । 28. वैदिक इण्डेक्स दूसरी जिल्द 1958 पृ. 343, मैकडानल भौर कीथ । 29. वैदिक कोश, वाराणसेय हिन्दुविश्वविद्यालय 1963, सूर्यकान्त । 30. भगवान परमर्षिभिः प्रसादितो नाम प्रियचिकीर्षया तदवरोधायने मरुदेव्यां धर्मान् दर्शयितुकामा वातरशनानां श्रमणानाम् ऋषीणाम् उमन्थिनां शुक्लया तत्वावतार भगवत पुराण 5/3/20 महावीर जयन्ती स्मारिका 77 Jain Education International श्रथर्ववेद 15 / 1 / 2 / 15 -- प्रथर्ववेद For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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