Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1977
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 254
________________ सुत्तत्रुणि' है, जिसमें केवल 6 पुस्तक चित्र हैं | 32 इन उपरोक्त प्रारम्भिक पाण्डुलिपियों में चित्रों की संख्या सामान्यतः बहुत कम है । 1288 ई० की सुबाहु कथा' नामक एक पाण्डुलिपि तथा अन्य कथाएं 'संघवी पाटन भण्डार' में सुरक्षित हैं । इसमें 23 चित्र हैं-- जिसमें चट्टानों, वृक्षों और जंगल के पशुभ्रों के प्राकारों को प्रकृति चित्रण के अन्तर्गत दर्शाया गया है । 23 व इसके अतिरिक्त खोज के आधार पर डा० रामनाथ ने 'प्र' गसूत्र', कथासरित्सागर' 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित' आदि ग्रन्थों कार चनाकाल भी उक्त प्रथम वर्ग की अवधि के अन्तर्गत ही निर्धारित किया है 124 (प्रा) द्वितीय वर्ग - ( 1350-1450 ई०) -- स्थूल रूप से इसका प्रारम्भ गुजरात प्रान्त में युगल शक्ति की स्थापना से सम्बद्ध किया जा सकता है । कोई भी पाण्डुलिपि 1370 ई० से पूर्व की अबधि की उपलब्ध नहीं है । 1427 ई० की एक पाण्डुलिपि 'इण्डिया श्राफिस लायब्ररी' लन्दन में स्थित होने का वर्णन मिलता है 125 इसके अतिरिक्त चित्र रचना व लेखन कार्य के लिए ताड़पत्र का स्थान कागज द्वारा लिये जाने से पूर्व की अवधि के पट-चित्र व पट-ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं, जिनमें उल्लेखनीय है 'वसन्तविलास' । यह ग्रन्थ 1451 ई० की सचित्र रचना है 126 मनोहर कौल के अनुसार पट (वस्त्र) पर चित्रित 1433 ई० का एक चित्र 'जैनपंचतीर्थी' ताड़पत्रीय पुस्तक भण्डार पाटन में है । 27 विज्ञप्तिपत्र' भी उस समय के उच्चस्तरीय प्रलंकृत वस्त्र चित्र थे । 2. कागज युग- ( 15वीं शताब्दी के प्रारम्भ से पश्चात् का समय ) - ताड़पत्रीय चित्र परम्परा के पश्चात् हम ऐसे युग में पहुंचते हैं, जबकि भारत महावीर जयन्ती स्मारिक 77 Jain Education International मैं ताड़पत्रों के स्थान पर कागज का प्रयोग होने लगा था । कागज यद्यपि भारत में बहुत पहले प्रा चुका था, किन्तु ग्रंथ निर्माण कार्यों में कागज का उपयोग 14वीं शती से हुआ, ऐसा माना जाता है 1 28 कागज ग्रंथों की क्रमबद्ध सारिणी हेतु डा० मोतीचन्द्र द्वारा निर्धारित समय विभाजन 29 ही अधिक उचित प्रतीत होता है- (अ) प्रारम्भिक काल -- ( 1400 - 1600 ई०) कागजीय पाण्डुलिपियों के अन्तर्गत यू० पी० शाह ने आरम्भिक चित्रित पाण्डुलिपि 1346 ई० की 'कल्पसूत्र' व 'कालकाचार्यं कथा' को माना है | 30 किन्तु यह मत सर्वमान्य नहीं हुआ । डा० मोतीचंद्र ने शैलीगत आधार पर इसको 15वीं शताब्दी की पाण्डुलिपि माना है । श्रतः विभिन्न लेखों के आधार पर इनमें प्राचीनतम हस्तलिखित चित्रित पाण्डुलिपि 1366 ई० की 'कालकाचार्य कथा' निश्चित होती है । 31 1367 ई० की एक अन्य पाण्डुलिपि का उल्लेख मिलता है, जो मुनि जिनविजयजी के अधिकार में थी । मुनि जिनविजयजी इसे कागजीय पाण्डुलिपियों में प्राचीनतम मानते हैं । 32 इसी समय की 1370 ई० की 'कल्पसूत्र' व 'कालकाचार्य कथा' नाम की प्रतियां मिलती हैं, जो उज्जमफोई धर्मशाला अहमदाबाद के भंडार में है 133 अहमदाबाद के एल० डी० इन्स्टीट्यूट श्राफ इण्डोलॉजी के संग्रह में 1396 ई० की एक प्रति 'शान्तिनाथ चरित' हे 34 प्रारम्भिक कागजीय पाण्डुलिपियों में 'प्रिन्स श्राफ वेल्स म्यूजियम' में स्थित 'कल्पसूत्र' व 'कालकाचार्यकथा' बहुत सुंदर प्रतियां हैं, जो वेश-भूषा के आधार पर 14वीं शती प्रतिम चरण की प्रतीत होती है । 3 इसी समय की तिथिविहीन 'कल्पसूत्र' व 'कालकाचार्यकथा' नाम की अन्य प्रतियां जैसलमेर के भंडार में स्थित हैं, जिनको श्री नवाब ने प्रारम्भिक 15वीं शतीं की बताई है 136 For Private & Personal Use Only 2-87 www.jainelibrary.org

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