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2. सम्भवतया 17वीं शती में चित्रित 'कल्प- यह है कि जन चित्रकला का प्रारम्भिक काल 7वीं सूत्र', जिसका रचना काल व्यक्त नहीं है। शती ई० की अपभ्रश शैली से माना गया है,
यद्यपि तत्सम्बन्धित पाण्डुलिपियां 11वीं शती के 3. 1769 ई० में चित्रित क्षेत्र समास लघु पश्चात की ही उपलब्ध हैं । यह चित्रकला शैली प्रकरणम्' नाम की पाण्डुलिपि । प्रमुखतः 18वीं शती तक अर्थात लगभग एक हजार
वर्ष से भी अधिक परिवर्तित रही। तदनन्तर वर्तइसके अतिरिक्त डा. श्री कस्तूरचन्द कासली.
मान समय तक के लगभग 300 वर्ष की अवधि में वाल ने 18वीं शती में चित्रित 'यशोधर चरित्र'
जैन चित्रकला का स्वरूप क्या रहा, यह शोध का की दो प्रतियों का उल्लेख किया है, जिसमें एक
विषय है क्योंकि इस अवधि में रचित ग्रंथ सामग्री प्रति 1731 ई० की श्री लूणकरभाजी पांड्या का
यद्यपि शास्त्र भण्डारों आदि में पर्याप्त मात्रा में मंदिर, जयपुर के शास्त्र भंडार में स्थित है तथा
संकलित है, तथापि उन भण्डारों के प्रबन्धकों आदि दूसरी 1743 ई० की श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन
के असहयोग प्रथवा अन्य कारणवश यह महत्वपूर्ण मन्दिर, जयपुर के शास्त्र भंडार में स्थित है ।
सामग्री तद्विषयक गवेषकों को उपलब्ध नहीं हो ताडपत्रीय व कागदीय सचित्र पाण्डुलिपियों के सकी है । इसी कारण इस अवधि की रचनामों पर विकास से सम्बन्धित उपरोक्त ऊहापोह का सार शोध कार्य नहीं के बराबर हुआ।
3.
Khandalavala, K.---Pahari Miniature Painting, P.4, Bombay,1958. Chandra, P. -- Indian illustrated Manuscripts, The Time of India Annual, P.42,1960. Khandalavala K. & Doshi, S.--Miniature Printing, Jain Art and Architecture (ed, by Ghosh, A.), vol II, P. 396, Delhi, 1975. Goetz, H. --Bulletin of the Baroda State Museum and Picture Gallery, vol. 4, Pts. 1-2, 1946-47. Chandra, M. --Jain Miniature Painting from Western India, P.S, Abmedabad, 1949. Ibid, Goetz, H, Opp. cit P. 27.
Chandra M. --An illustrated Manuscript of the Kalpasutra and KalaKacharya Katha Bulletin of the Prince of Wales Muscom, No. 4, PP. 40-41, 1954-54.
9.
Khandalaval, K., Chandra, M. & Chandra, P.--Miniature Paintings from the Shri Moti Chand Khajanchi Collection, Lalit Kala Akademi, P.१, N. Delhi 1960.
2-90
मनावीर जयन्ती स्मारिका 77
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