Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1977
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 253
________________ कागदीय पाण्डुलिपियों की शुरूपात का माना है। एक पुस्तक का उल्लेख किया है, जिसमें मात्र एक उपलब्ध सामग्री के प्राधार पर पूर्व मत ही इष्ट व हाथी का चित्रण मिलता है । यह पुस्तक एक मान्य प्रतीत होता है। व्यापारी के पुत्र प्रानन्द ने लिखकर मुनि चन्द्रसूरि १. ताड़पत्र युग (1100-1400 ई०) के शिष्य मुनि यशोदेव सूरि (1093--1123 ई०) चित्रगत शैली के आधार पर पश्चिम भारतीय को भेंट स्वरूप दी थी। प्रतीत होता है कि स्कूल की ताडपत्रीय सचित्र पाण्डुलिपियों का विभा- पाण्डुलिपियों को चित्रित करने की परम्परा इसके जन निम्न दो वर्गों में किया गया है। पश्चात् प्रारम्भ हुई। (अ) प्रथम वर्ग-(1100-1350 ई०) ताडपत्रीय पाण्डुलिपियों के अन्तर्गत 1112 ई० 'षटखण्डागम' तथा 1112-20 ई० 'महाबन्ध' (प्रा) द्वितीय वर्ग- (1350-1450 ई.) व 'कसायपाहुड'- इन प्रारम्भिक दिगम्बर जैन (अ) प्रथम वर्ग-इसके अन्तर्गत वे पाण्डुः पाण्डुलिपियों का भी उल्लेख मिलता है, जो मूडबिद्री लिपियां हैं, जिनका निर्माण मुजरात में सोलंकी में जैन सिद्धान्त बस्ती के संग्रह में स्थित हैं।15 राजाओं के संरक्षण में हुआ था। तत्पश्चात् (Jnata Dharma Katha), डा० कुमारस्वामी तथा मेहता ने प्राचीनतम 'ज्ञानसत्र'16 (1126 ई०) की दो ताडपत्रीय पाण्डुताडपत्र पर चित्रित 'कल्पसूत्र' को माना है। लिपि, दो काष्ठ पट्टिकाएं (जर्जरित) (ताड़पत्रीय इसका रचनाकाल 1236 ई० के लगभग निश्चित पाण्डुलिपि के मुख व पृष्ठ की), 'दसर्वकालिक लघुहोता है ।10 डा० गोयेट्ज के मतानुसार सबसे वृत्ति'17 (1143 ई०) 'उपनियुक्ति' (1161 प्राचीन चित्रित कृति ताडपत्र पर प्रकित 'निशीथ- ई०) तथा अन्य दूसरे ग्रन्थ चित्रित हुए।18 चूरिण' है, जिसकी रचना सिद्धराज जयसिंह के राज्यकाल में 1100 ई० में हुई थी। यह पाण्ड्र. उपरोक्त सभी पाण्डुलिपियों की प्रदर्शिनी लिपि पाटन के जैन भण्डार में स्थित है। इसमें 'पाल इण्डिया प्रोरियन्टल कान्फ्रेस' के सत्रहवें सत्र चित्रों के नाम पर कुछ बेल बूटे एवं पश-प्राकृतियां के अन्तर्गत प्रहमदाबाद में की गई थी। इसके हैं।11 डा. रामनाथ ने इससे भी पूर्व की एक अतिरिक्त 1143 ई० से 1174 ई० तक की प्रति 'भगवती सूत्र' का उल्लेख किया है, जो कि अवधि में रचित प्राचार्य हेमचन्द्र सूरि तथा राजा 1062 ई० की है। यह प्रति उक्त पाटन भण्डार कुमारपाल के अनेक व्यक्ति चित्रों के सन्दर्भ भी में ही स्थित है, किन्तु इसमें मात्र अलंकरण किया मिलते हैं 120 हुआ है। चित्र नहीं हैं। सम्प्रतिक शोध के फलस्वरूप कालं खण्डेलवाल इसके अतिरिक्त श्री खण्डेलवाल तथा डा० तथा सरयू दोषी द्वारा कुछ निम्न ताडपत्रीय पाण्डुसरयू दोषी ने प्राधुनिक खोजों के प्राधार पर इससे लिपियां भी प्रकाश में लाई गई हैं :-- भी पूर्व 1060 ई० को 'मोघ नियुक्ति' एवं 'दस- 1241 ई० की एक 'नेमिनाथ चरित' शान्ति वैकालिक-टीका' नामक ताडपत्रीय प्रति का उल्लेख भण्डार में स्थित है-- जिसमें बैठी हुई अम्बिका के किया है, जो इस समय जैसलमेर के जैन भंडार में एक प्राकर्षक चित्र सहित, चार पुस्तक चित्र स्थित हैं। इसमें एक चित्र श्री कामदेव का तथा कुछ हैं 21 फाइन प्राट्स बोस्टन संग्रहालय' में सुरक्षित, हाथी का चित्रण भी किया हुवा है ।13 तत्पश्चात् मेवाड़ में उदयपुर के पास सम्पादित की गई मठनियमों पर आधारित 'पिन्दनियुक्ति' नामक 1260 ई० की एक पाण्डुलिपि 'सावगपडिक्कमण2-86 महावीर जयन्ती स्मारिका 77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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