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बाहर का विज्ञान बढ़ाया कितना?
- निहालचन्द जैन, एम० एस०सी०
ध्याख्याता, नौगांव (म०प्र०)
बाहर का विज्ञान बढ़ाया कितनाअन्तर का ज्योति-कलश, छलकानो तो जाने । कागज पर कितने गीत छन्द रच डालेजीवन-सर्जक को, मन-दर्पण पर झलकानो तो जाने ॥
मन के तामस अन्धकार के, स्वप्नों ने हमें छला है। तृष्णा के एक अणु पर, अटके सुख में हमें ठगा है।
मैं जड़ता का अनुगामी, माया त्रिशंकु पर लटका । मेरा नाम अलग हो मुझ सेजाने कहां कहां भटका !
मन्दिर को वेनो तो महकायो है फूलों सेमन को वेदी का बासापन धो डालो तो जाने अन्तर का ज्योति कलश छलकानो तो जाने ॥
मृत्यों के परिचय-संग्रह में, अमृत का इतिहास चुक गया। अपने से विस्मरण अपरिचय, अपना हो परिहास बन गया।
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
B-83
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