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चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल में १२ वर्ष का उत्तर भारत में भीषण काल तथा जैन सन्त भद्रबाहु का अपने शिष्यों सहित दक्षिण में पलायन प्रव एक स्वीकृत ऐतिहासिक तथ्य है । उनके वहाँ पहुंचने के पश्चात् प्रपनी परम्परानुसार उन्होंने वहाँ की तत्कालीन लोक भाषा तामिल को अपनी कृतियों से समृद्ध किया । उन्होंने प्रायः प्रत्येक विषय पर अपनी लेखनी चलाई । उनमें से व्याकरण, छन्दशास्त्र तथा शब्द कोष सम्बन्धी कतिपय जैन तमिल रचनाओं का संक्षिप्त परिचय इस निबन्ध में है । लेखक 'तमिल कोविद' हैं अतः इस विषय पर अपनी लेखनी अधिकारपूर्वक चलाने में सक्षम हैं।
- प्र. सम्पादक
तमिल भारती को जैन मनीषियों का योगदान
* श्री रमाकान्त जैन, बी. ए., सा. र., तमिल - कोविद, लखनऊ
समकालीन विद्वान पनमपारणार ने इसे ऐन्द्र निरञ्च" अर्थात् संस्कृत व्याकरण 'ऐन्द्र' जो एक जैन कृति है का निचोड़ कहा है और पाण्ड्य सभा में पढ़े जाने के उपरान्त इमे श्रडकोट्टाशन द्वारा मान्य किये जाने की बात कही है। पनमपाणनार ने तोलकाप्पियर के लिये पल-पूगल निरूत- पडि मैयोन' (अर्थात् महान प्रसिद्ध प्रतिमा योगी) विशेषण प्रयुक्त किया है । इस व्याकररण ग्रन्थ के 'मरवियल' नामक विभाग में जीवों का जो वर्गीकरण किया गया है वह जैन सिद्धान्त के अनुसार है । इस व्याकरण ग्रन्थ पर पाणिनी की अष्टाध्यायी को भांति प्राचीनकाल से ही टीकाएं लिखी जाती रही हैं और प्राधुनिक काल में भी तमिल के प्रकाण्ड पंडितों द्वारा सम्पादित इसके विभिन्न अधिकार (भाग) प्रकाशित हुए हैं ।
तमिलनाडु की तेन मौलि अर्थात् मधु की भांति मधुर भाषा तमिल की उत्पत्ति का श्रेय मलय पर्वत पर निवास करने वाले श्राचार्य पोदिय मलै प्रगत्तियार ( अगस्त्य ऋषि) को दिया जाता है प्रोर उनकी कृति 'प्रगत्तियम्' को तमिल का आदि व्याकरण माना जाता है, किन्तु वह प्रनुप लब्ध है | तमिल भाषा की जो प्राचीनतम कृति अब उपलब्ध है वह है 'तोलकाप्पियम्' । संयोग से यह एक व्याकरण ग्रन्थ है जिसमें वर्णं, शब्द और अर्थ के विषय में तीन भागों में विचार किया गया है । ग्रन्थ के तृतीय भाग में शब्दों के अर्थों पर विचार करते समय छन्द, प्रलंकार, तत्कालीन रीति रिवाज सम्प्रदाय, युद्ध नीति, राजनीति, तमिलनाडु की भौगोलिक स्थिति इत्यादि विविध विषयों का भी विस्तृत विवेचन हुआ है । इस व्याकररण ग्रन्थ के रचयिता तोलकाप्पियर माने जाते हैं । कुछ लोगों का कहना है कि वह अगस्त्य ऋषि के शिष्य थे । इस ग्रन्थ की प्रस्तावना में
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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प्रगत्तियम् और तोलकाप्पियन की परम्परा में उनके ज्ञाता और संस्कृत के जैनेन्द्र व्याकरण से
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