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राजा डिमित अपनी सेना तथा वाहन छोड़ कर मथुरा भागने को विवश हुप्रा । डा० जायसवाल इस यवनराज डिमित का तादात्म्य हिन्द-यूनानी शासक यूथोडेमस के पुत्र डेमेट्रियस से स्थापित करते हैं। डा० बनर्जी22 और डा० कोनो23 उपयुक्त पाठ और अभिज्ञान से सहमत है। तो भी, डा० कोनो सन्देह व्यक्त करते हुए कहते हैं कि 'यवन राज' के बाद केवल 'म' प्रक्षर ही स्पष्ट है । अतः 'डिमित' पाठ अनुमान के प्राधार पर ही पूरा किया जा सकता है। डा० टार्न-4 का भी ऐसा ही मत है। अनेक विद्वान जिनमें डा० बरू प्रा25, रायचौधरी26 और सरकार प्रमुख हैं, का मत है कि अभिलेख में ‘डिमित' का उल्लेख नहीं है । डा. नारायण 28 का मत है कि अगर हम 'यवनराज डिमित' पाठ को स्वीकार भी कर लेते हैं, तो भी, हम यूथी डेमस के पुत्र डेमेट्रियस को पहली शती ई० पू० के उत्तरार्द्ध में नहीं रख सकते । अतः खारवेल की राज्यारोहण तिथि निश्चित करने में 'यवनराज डि मित' पाठ से हमें कोई सहायता नहीं मिलती।
ति-वस-सत:
__ अभिलेख की चौथी पंक्ति में 'ति-वस-सत' पद मिलता है । इस पद का अनुवाद निम्नप्रकार से किया गया है
1. भगवानलाल इन्द्रजी29 इस पद का अनुवाद 'उसने नन्दराज के त्रिवर्षीय सत्र का उद्घाटन किया' करते है। उनकी यह अवधारणा सभी विद्वानों द्वारा अस्वीकार कर दी गयी है ।
2. प्रो० लुडर्स30 का मत है कि 'वह नन्दराज द्वारा 103 वर्ष पूर्व बनवायी नहर नगर मे लाया।'
3. जायसवाल मौर बनर्जी31 का कथन है कि 'वह नन्दराज द्वारा 300 वर्ष पूर्व बनवायी नहर राजधानी तक लाया' कालान्तर में उन्होंने प्रभिलेख के पाठ और अनुवाद में संशोधन किया और तब उक्त पद का अनुवाद 300 वर्ष के स्थान पर 103 वर्ष स्वीकार कर लिया।
डा० जायसवाल उपयुक्त अवतरण के वर्ष को नन्द संवत् में प्रकित मानते हैं। प्रलबेरूनी ने इस संवत् का उल्लेख किया है। पाजिटर चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्याभिषेक 322 ई० पू० में मानते हुए और नंदवंश की समस्त शासनावधि 80 वर्ष उस में जोड़कर 402 ई० पू० में पहले नन्द शासक का राज्यारोहण स्वीकार करते हैं । उनके अनुसार नन्द शासक द्वारा कलिंग में (402 - 103) = 299 ई० पू० में नहर बनवायी गयी। किन्तु यह असंभव प्रतीत होता है । अगर पौराणिक साक्ष्य को मानकर नन्दों की शासनावधि 100 वर्ष भी स्वीकार कर ली जाये तब (322 + 100 - 103)= 319 ई० पू० नहर का निर्माण वर्ष निर्धारित होता है। लेकिन इस तिथि के पूर्व ही चन्द्रगुप्त मौर्य मगध का शासक बन चुका था, प्रत. उपयुक्त तिथि प्राचीन भारतीय शासकों के मान्य कालक्रम के विपरीत होने से स्वीकार नहीं किया जा सकती।
राखालदास बनर्जी का मत है कि नहर का निर्माण खारवेल के पांचवे शासनवर्ष के 103 वर्ष पूर्व नन्दवंश के प्रथम शासक के राज्यकाल में हुप्रा । डा० जायसवाल से सहमति प्रकट करते हुए वे कहते हैं कि नन्द संवत् =458 ई० पू० में प्रारम्भ हुमा । अतः नहर का निर्माण (458 - 102)= 355 ई० पू० में कराया गया। यह तिथि चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण के 33 वर्ष पूर्व की होने के कारण समीचीन हो सकती है। किन्तु इस मत की सबसे बड़ी कमी यह है कि
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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