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सम्प्रदाय के नहीं थे, इसलिये रविषेणाचार्यं उनके नामोल्लेख से कतरा गये हैं ।
यापनीय सम्प्रदाय के अनुयायी स्वयंभु ने भी अपने अपभ्रंश पउमचरिय के प्रारम्भ में लिखा है कि यह रामकथा र विषेणाचार्य के प्रासाद से उन्हें प्राप्त हुई है । यदि श्राचार्य विमलसूरि यापनीय होते तो स्वयंभु निश्चित ही उनका बहुमानपूर्वक उल्लेख करते । स्वयंभु पउमचरिय और विमलसूरि से परिचित न हों, यह बात असंभव प्रतीत होती है ।
आचार्य विमलसूरि द्वारा जैन मुनि के लिये सियंवर या सेयंबर शब्द का प्रयोग भी उनके श्वेताम्बरत्व को प्रमाणित करता है ।"
पुष्पिका में विमलसूरि को पूर्वघर बताया गया है, पूर्वधरों की सूची में इनका नाम कहीं भी प्राप्त नहीं होता, किन्तु श्वेताम्बर परम्परा भगवान महावीर के निर्वाणोपरान्त एक हजार वर्ष तक पूर्वधरों का अस्तित्व स्वीकार करती है । श्राचार्य विमलसूरि का पूर्वधर होना श्वेताम्बर परम्परानुकूल है ।
श्रागमेतर श्वेताम्बर जैन साहित्य जैन महाराष्ट्री में लिखा गया है, पउमचरिय भी जैन महाराष्ट्री में रचित है, अतः इसकी भाषा भी इसे श्वेताम्बर घोषित करती है ।
स्त्रीमुक्ति' जैसे सिद्धान्त का समर्थन करने के कारण उन्हें दिगम्बर परम्परा का प्राचार्य तो माना ही नहीं जा सकता । यापनीय सम्प्रदाय अवश्य स्त्रीमुक्ति स्वीकार करता रहा किन्तु इनके यापनीय होने के भी साधक प्रमाण नहीं मिलते हैं, किन्तु जैसा कि डॉ० वी० एम० कुलकर्णीजी ने कहा है इनका नाइलकुलवंश, श्वेताम्बर मुनि का उल्लेख तथा जैन महाराष्ट्रो भाषा ये प्रमाण इनको श्वेताम्बराचार्य प्रमाणित करते हैं 18
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पउमचरिय के जो उल्लेख श्वेताम्बर परम्परा के विरुद्ध प्रतीत होते हैं उनमें से प्रमुख यह है कि गौतम गणधर तथा राजा श्रेणिक की वक्ता श्रोता योजना दिगम्बर परम्परा के अनुकूल है; महावीर के गर्भापहरण तथा विवाह की घटना का उल्लेख नहीं है भादि ।
भगवान महावीर के जीवनकाल में ही गौतम श्रादि गणधर धर्मोपदेश दिया करते थे । श्रावश्यक चूरिंग में भगवान महावीर की देशना के उपरान्त गौतम आदि गणधरों के धर्मोपदेश का उल्लेख है
तित्थगरो पढमपोरुसीय धम्मं ताब कहेमि जाव पढमपोरुसी उग्धाडवेला । उवार पोरुसीए उठ्ठिते तित्थकरे गोयमसामी प्रनो वा गणहरो बितीय पोरुसीए धम्मं कहेति । 10
राजा श्रेणिक भगवान महावीर के समकालीन प्रसिद्ध जैन सम्राट हुये हैं, जिन्होंने गौतम गणधर से अपनी अनेक शंकाओं का समाधान किया होगा, अतः इन्द्रभूति गौतम तथा राजा श्रेणिक की वक्ता श्रोता योजना की परम्परा का प्रारम्भ हुआ । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार भगवान महावीर पश्चात् प्रमुख शिष्य होने पर गौतम गणधर के स्थान पर सुधर्मा स्वामी को संघ का नेतृत्व प्राप्त हुआ। सुधर्मा स्वामी ने पट्टधर होने के काल में जम्बूस्वामी की शंकाओं का समाधान किया । इस प्रकार जैन सम्प्रदाय में प्रथमतः गौतम श्रेषिक व फिर आर्य सुधर्मा व जम्बूस्वामी की वक्ता श्रोता योजना का आरंभ हुप्रा । इनमें से प्रथम को दिग़म्बर सम्प्रदाय ने और दूसरी को श्वेताम्बर सम्प्रदाय ने अपना लिया । पउमचरिय श्रारम्भिक शताब्दियों की रचना है, उस समय तक ये परम्परायें रूढ़ नहीं हुई होंगी, श्रतः पउमचरिय में श्रेणिक गौतम गणधर की श्रोता वक्ता योजना मिलती है ।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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