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प्रयुक्त होते हैं । अतः उन्होंने भिक्षुनों से कहा था कि अपने जनपद की भाषा के प्रयोग के प्रति ममता न रखकर जहां जैसा प्रयोग चलता हो, वहां उसी के अनुसार बरतना चाहिए । जनभाषात्रों के महत्व के प्रति भगवान् बुद्ध के इस प्रकार के विचार होने के कारण ही बौद्ध धर्म के इतिहास में देश-विदेश की विभिन्न जन भाषाओं का प्रयोग हो सका है।
यद्यपि भगवान् बुद्ध के समय में भी जन भाषात्रों को किसी धर्म बिशेष की भाषा मानने में लोगों को श्रापत्ति थी । बौद्ध भिक्षु चमेलु प्रौर तेकुल इस बात से दुखी होते हैं कि नाना जाति श्रीर गोत्रों के मनुष्य अपनी-अपनी भाषा में बुद्ध वचनों को रख कर उन्हें दूषित करते हैं । प्रत बुद्ध वचनों को छान्दस् (वैदिक संस्कृत) में रखने की भगवान् बुद्ध से अनुमति चाहते हैं । किन्तु बुद्ध ऐसा करना दुष्कृत' मानते हैं । वे नहीं चाहते थे कि बुद्ध के उपदेश शिष्ट समुदाय के कुछ लोगों की भाषा में सिमट कर रह जाय । श्रत उन्होंने भिक्षुषों को अपनी अपनी भाषा में बुद्ध वचन सीखने की अनुज्ञा दी थी। भगवान् बुद्ध के इस उदार दृष्टिकोण के कारण ही बौद्ध धर्म जब तक भारत में प्रभावशाली रहा, यहां की जनभाषात्रों को समृद्ध करता रहा है ।
बौद्ध राजाओं ने भी जनभाषात्रों के महत्व को समझा है । बौद्ध धर्म के सच्चे भक्त होने के कारण वे बुद्ध की वारणी को जन-जन तक पहुंचा देना चाहते थे । इसलिये उन्होंने अपने अभिलेख प्रादि विभिन्न प्रान्तों की जन भाषाओं में प्रचारित किये हैं । अशोक के अभिलेख इस बात के प्रमाण हैं । यद्यपि अशोक के अभिलेखों में पालि भाषा की प्रधानता है, किन्तु उनमें विभिन्न स्थानों की जन- भाषा के तत्व भी स्पष्ट हैं। 8 सांची श्रोर सारनाथ के अभिलेख भी बौद्ध धर्म से प्रभावित हैं, जिनकी भाषा पालि है । बरमा के राजा धम्मचेति का कल्याणी - अभिलेख भी पालि में
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है । इस तरह बौद्ध धर्म के शासक भी भगवान् बुद्ध की विचारधारा से प्रभावित रहे हैं ।
बौद्ध धर्म में दार्शनिक साहित्य की प्रधानता है । दर्शन की विशिष्ट अनुभूतियों को जनभाषा में प्रस्तुत करने से बहुत से नये शब्दों का भण्डार जनभाषा को प्राप्त हुमा है। पालि भाषा में इस तरह के अनेक शब्द हैं, जो अन्य भाषाओं में नहीं हैं तथा पालि से उन भाषाधों में ग्रहण किये गये हैं । प्राकृत, अपभ्रंश प्रादि जन भाषाओं के साहित्य को समझने के लिए भी पालि की शब्दसम्पत्ति का अध्ययन श्रावश्यक है। क्योंकि पालि का विकास मगध जनपद की अनेक बोलियों के सम्मिश्रण से हुधा है। प्रारम्भ में पालि को मागधी ही कहा जाता था । 10 तथा इस मागधी भाषा को सब प्राणियों की मूल भाषा भी कहा गया है । 11 जो इसके जनभाषा होने का प्रमाण हैं । प्रारम्भ में पालि बुद्धवचन के लिए प्रयुक्त शब्द था, 12 बाद में बुद्धवचन की भाषा को पालि कहा जाने लगा है ।
भारत में बौद्ध धर्म ने पालि भाषा को अपना कर मगध जनपद में प्रचलित जन-भाषा को समृद्ध किया है । तथा पालि भाषा के साहित्य द्वारा भारतीय साहित्य की अनेक विधानों को पुष्ट किया । बौद्ध धर्म में जनभाषा को अपनाने की परम्परा निरन्तर बनी रही है । जब बौद्ध धर्म भारत के पड़ोसी देशों में गया तो वहां भी पालिभाषा का प्रचार हुआ । किन्तु उन देशों की जनभाषाओं में भी बौद्ध धर्म का पर्याप्त प्रचार हुमा हैं ।
भारत के दक्षिण में बौद्ध धर्म सर्व प्रथम लंका में गया । लंका में पालि त्रिपिटक के प्रतिरिक्त सिंहली भाषा में निबद्ध त्रिपिटक का भी पर्याप्त प्रचार है । सिंहली भाषा में बौद्ध धर्म के अन्य ग्रन्थ भी वहां लिखे गये हैं । जब यह धर्म बरमा पहुंचा तो वहां की संस्कृति को इसने प्रभावित
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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