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किया। बरमी भाषा में बौद्ध धर्म के अनेक ग्रन्थ जैन धर्म में प्रारम्भ से ही लोकभाषानों को हैं । यद्यपि यहां लम्बे समय तक पालि भी बौद्ध महत्त्व दिया जाता रहा है। भगवान् ऋषभदेव साहित्य की भाषा बनी रही है। थाईलैण्ड और एक लोक देवता के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं।17 कम्बोडिया बोद्ध देश कहे जाते हैं । यहां का धर्म, उनके बाद की श्रमण-परम्परा का जो इतिहास साहित्य और भाषाए बौद्ध धर्म से अनुप्राणित मिलता है उससे स्पष्ट कि श्रमण-परम्परा तथा हैं । बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा का यहां पर्याप्त महत् धर्म का शिष्ट समुदाय की भाषा संस्कृत से प्रचार है।13
कोई घनिष्ट सम्बन्ध नहीं रहा है ।18 जैनाचार्यों बौद्ध धर्म की महायान शाखा का प्रचार चीन, द्वारा प्रणीत पूर्व साहित्य की भाषा प्राकृत पर ही तिब्बत, कोरिया, मंगोलिया तथा जापान में अधिक आधारित मानी गई है । वैदिक साहित्य के कई है। चीन में बौद्ध ग्रन्थों का अनुवाद चीनी भाषा साक्ष्यों द्वारा भी महावीर के पूर्व जनभाषा के रूप में हुआ है इससे चीनी भाषा की समृद्धि तो में प्राकृत का प्रचलित होना प्रमाणित होता है। हुई ही है, जिन संस्कृत ग्रन्थों का यह अनुवाद पार्श्वनाथ एवं महावीर द्वारा तो जनभाषा के है उनके अस्तित्व को प्रमाणित करने में भी प्रचार-प्रसार के स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध हैं ।20 चीनी अनुवाद के ग्रन्थ महत्वपूर्ण हैं। प्राचार्य
भगवान् महावीर की साधना जन सामान्य कुमारजीव एवं परमार्थ ने चीनी अनुवाद के ।
को धार्मिक समानता, सामाजिक प्रतिष्ठा तथा अतिरिक्त अन्य स्वतन्त्र ग्रन्थ भी चीनी भाषा में
राजनैतिक स्वतन्त्रता उपलब्ध कराने में सार्थक हुई लिखे हैं, जो बुद्ध धर्म एवं उनके प्राचार्यों के
है। मनुष्य की भाषा की स्वतन्त्रता पर महावीर ने सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डालते हैं । तिब्बत में
विशेष बल दिया है। उनके जीवन में ऐसे कई बौद्ध धर्म के प्रचार ने एक प्रोर जहां भारत और
प्रसग आये हैं जब उन्होंने जन भाषा के विकास के तिब्बत के सम्बन्धों को दृढ़ किया है वहां तिब्बत
लिए परम्परा से प्राप्त शास्त्र और भाषा की की जनभाषा को भी समृद्ध किया है। बौद्ध ग्रन्थों
व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया। कहा जाता है का तिब्बती अनुवाद इतना सटीक हुमा है कि
कि महावीर ने किसी को अपना गुरु नहीं बनाया । उसके माधार पर भारत के मूल संस्कृत ग्रन्थों का
वे पाठशाला से वापिस लौट प्राये ।21 इस घटना पुनः उद्धार किया जा रहा है ।15 जापान में
की यह सार्थकता है कि व्यावहारिक शिक्षा ही प्रचलित बौद्ध धर्म से वहाँ अनेक बौद्ध सम्प्रदायों
आत्मज्ञान का प्रवेशद्वार नहीं है। अक्षर और ने जन्म लिया है । इन सम्प्रदायों के साहित्य द्वारा
ध्याकरण-ज्ञान से रहित व्यक्ति भी प्रात्मविकास जापानी भाषा की अधिक समृद्धि हुई है ।16 इस
के पथ पर आगे बढ़ सकता है । लोक की भाषा में तरह बौद्ध धर्म देश-विदेश में जहाँ भी फला-फूला,
अपनी बात कह सकता है। वहां की जनभाषामों को उसने अवश्य प्रभावित किया है । भगवान् बुद्ध के जनभाषानों के सम्बन्ध भाषा के दोष एवं गुणों को जान कर ही में उदार-विचार, पालि भाषा की उत्पत्ति के उसका व्यवहार करने तथा भाषा की क्लिष्टता को मूल में जनभाषामों का मिश्रण, बौद्ध राजारों हमेशा त्याग करने की बात महावीर ने कही है। 22 का लोकभाषानों को प्रश्रय तथा बौद्ध प्राचार्यों दशवकालिक में उन्होंने कहा है कि जिससे द्वारा अनेक भापात्रों के ज्ञान की उपलब्धि प्रादि अप्रीति उत्पन्न हो और दूसरा व्यक्ति शीघ्र कुपित सबके कारण ही भगवान् बुद्ध की परम्परा में हो ऐसी अहितकारी भाषा कभी नहीं बोलनी विभिन्न जनभाषाए विकसित हो सकी हैं। चाहिये ।23 ज्ञानवान् व्यक्ति सुनने वाले के हृदय
महावीर जयन्ती स्मारिका 71
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