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समाकलन :
सम्पूर्ण जैन राम- साहित्य सीता की विभिन्न छवियों तथा बिम्बों से परिपूर्ण है । उनको जैन कवियों ने अपने धर्म सम्प्रदाय तथा सिद्धान्त के अनुसार गढ़ने का सफल प्रयास किया है । भारतीय वाङ्मय को जैन राम साहित्य का यह अप्रतिम प्रदेय है कि उसने सीता को धरती पुत्री के समान ही आकलित किया ।
हिन्दी की जैन रामकथा की मध्यकालीन परम्परा में मुख्य कृतियां निम्नलिखित हैं-
(क) मुनिलावण्य की 'रावण मन्दोदरी सम्वाद'
(ख) जिनराजसूरी की 'रावण मन्दोदरी सम्वाद' भोर
(ग) ब्रह्मजिनदास का 'रामचरित' या 'रामरास' और 'हनुमंत रास' |
इनमें सीता के चरित्र के अनेक उज्ज्वल तथा सरस पावों को सफलतापूर्वक उद्घाटित कया गया है।
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श्वेत - श्री
हाँ वे !
जो, शरीर धोकर
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
* श्री सुरेश सरल, जबलपुर
ऊँची टहनी पर बैठे हैं,
बगुले हैं;
क्षण भर पूर्व
पोखर के
गंदे कीचड़ में लेटे थे ।
जिनके लिये
कीचड़ ौर टहनी
दोनों 'फ्री' हैं,
समाज में भी ऐसे"श्वेत- श्री " हैं ।
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