________________
जैन भूगोल के अनुसार जम्बू द्वीप को भरत, हैमवत प्रादि सात क्षेत्रों में विभक्त करने वाले हिमवत्, महाहिमवत् प्रादि छह कुलाचल पर्वत हैं। प्रत्येक कुलाचल पर्वत पर एक-एक सरोवर है। उस सरोवर के मध्य में एक कमल है । हिमवत् पर्वतोपरि सरोवर का नाम पद्म है। इसके कमल में भी देवी का सामानिक प्रौर पारिषद् जाति के देवों सहित निवास है । लौकिक परम्परा में श्री समृद्धि की प्रतीक है।
प्र० सम्पादक
प्राकृत साहित्य में श्री देवी की लोक परम्परा
* श्री रमेश जैन, बीकानेर
__ महावीर का भुकाव जन भावना को मादर की, अपितु पूजा-अर्चना, आयतन निर्माण इत्यादि देने का, अधिक रहा है। उन्होंने अपने शिष्यों को की महत्वपूर्ण सूचनाए जैन साहित्य में सुरक्षित प्रादेश दिया था कि वे जिस जिस क्षेत्र पौर प्रदेश में हैं। सर्वप्रथम हम वैदिक-साहित्य में चचित स्वरूप विहार करें, वहां की भाषा (क्षेत्रीय पौर प्रादेशिक) को प्रस्तुत करेंगे तत्पश्चात् प्राकृत-अपभ्रंश सीखें और प्रवचन करें। इसलिए उन्हें अठारह साहित्य में श्री देवी के स्वरूप की विवेचना रखेंगे। देशी भाषाओं का ज्ञाता होना प्रावश्यक कहा गया
प्रजनन एवं समृद्धि की देवी श्री है। लोक-रुचि मोर लोक-भावना को प्रादर देने की मूलभित्ति पर जैन धर्म आधारित हैं । जैन-साधु प्रजनन की देवी के रूप में सबसे पुराना और श्रावक के सीधे सम्पर्क, विभिन्न क्षेत्रों में विहार उल्लेख 'वाजसनेयी संहिता' में मिलता है । इसे करने के फलस्वरूप जैनाचार्यों द्वारा रचित साहित्य कीचड़ में विकसित-कमल से युक्त, समृद्धिदाता कहा में, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, लौकिक परम्प- गया है।' रामों एवं धर्मों का आकलन, सहज ही हो गया है। ऐसा ही उल्लेख ऋग्वेद के खिल भाग में आये
प्रजनन को देवी श्री के सन्दर्भ वैदिक साहित्य श्री सूक्त (पांचवा मण्डल) में है जहां देवी को माता में, प्रचुर मात्रा में प्राप्त है । ईसा की 2री-3री श्री,क्ष्मा या पृथ्वी कहा है (देवी क्ष्मा या भूमि), शताब्दि तक श्री का श्रीलक्ष्मी में समन्वय हो गया श्री (देवी मातरं श्रियम्) । इसे सब पशुओं की और श्री का मूल स्वरूप तिरोहित हो जाना प्रतीत जनित्री और अन्नों की उत्पादियत्री कहा है (पशूनो होता है । किन्तु जैन साहित्य में प्राप्त सूचनामों से रूपमन्नस्य मयि: श्रीः श्रयतां यशः) । यह कृषकों ऐसा लगता है कि श्री देवी अपने मूल रूप में लोक- की संरक्षक देवी रही। इसके लिए 'पार्दा' विशेषण परम्परा में सुरक्षित रहीं है। न केवल मूलस्वरूप भी प्रयुक्त हुमा है, जिसका अर्थ ताजा, वृक्ष जैसा
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
2-25
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org