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सत्य तक पहुंचने के लिए यह सप्तभंगी न्याय बहुत समस्याएं हल की जा सकती हैं, सारे विवाद दूर उपयोगी है।
किये जा सकते हैं। शर्त इतनी ही है कि मन में 'ही' और 'भी' को लेकर भी बहुत गलतफहमी अपन
अपने विचार के प्रति दृढ़ता तो रहे, पर प्राग्रह न है । अनेकान्ती व्यक्ति प्राग्रह, अहंकार या अभि
रहे और दूसरे के विचारों में निहित सत्यांश को निवेशवश अर्थात् दूसरे के दृष्टिकोण या विचार
ग्रहण करने की तत्परता रहे । अन्यथा तो जैसे का तिरस्कार करने के लिए 'ही' का प्रयोग कदापि
अहिंसा धीरे-धीरे जड़ कर्मकाण्ड या लीक पीटने
की निस्तेज प्रक्रिया मात्र रह गयी, वैसे ही अनेकांत नहीं करेगा। भी' का प्रयोग इस तथ्य की सूचना है कि इसके अतिरिक्त और भी बहुत कुछ उसमें
के साथ भी खिलवाड़ किया जा सकता है । गर्भित है। हाँ, जीवन में बार-बार 'ही' का भी जैसे ताली दोनों हाथों से बजती है, वीणा के प्रयोग करना पड़ता है । 'ही' का प्रयोग किये बिना तारों से स्वर अंगलियों के स्पर्श से ही निकलता बात में दृढ़ता नहीं पाती। ढीली या संशयास्पद है, दधि का मन्थन रस्सी के दोनों सिरों को आगेबात का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अंश कथन की पीछे घुमाने से होता है, हमारे पैरों में गति दोनों पूर्णता के लिए 'ही' का प्रयोग पावश्यक है, लेकिन पैरों को आगे बढ़ाने से ही पाती है, हमारी इन्द्रियां जहाँ अपेक्षा का स्पष्ट निर्देश हो वहां 'ही' लगाना
पारस्परिक सहयोग पर ही अपना काम करती हैं, प्रावश्यक हो जाएगा।
उसी प्रकार समाज का जीवन विरोधों के समन्वय ऊपर के विवेचन से यह स्पष्ट है कि अनेकान्त. से चलता है । यहाँ राजनीतिक क्षेत्र के दो महान् दृष्टि के बिना जीवन चल नहीं सकता। माध्यात्मिक देश सेवकों के दो वचन इस सन्दर्भ में देकर मैं एवं दार्शनिक क्षेत्र में तो उसकी उपयोगिता और अपनी बात समाप्त करूगा । अंग्रेजी राज्य के सार्थकता निर्विवाद है, सामाजिक एवं व्यावहारिक जमाने में पं० जवाहरलालजी नेहरू कहा करते थे क्षेत्रों में भी उसकी उपयोगिता संशय से परे हैं। कि 'हम झुक जाएँगे लेकिन टूटेंगे नहीं।' और अनेकान्त हमें जीवन की पात्रता प्रदान करता है। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस कहा करते थे कि 'हम टूट जीवन की पात्रता का प्राधार सत्यनिष्ठा और जाएंगे लेकिन झुकेंगे नहीं ।' ये दोनों वचन परस्पर सत्यग्राहिता है और यह मानव मात्र के प्रति आदर विरोधी प्रतीत होते हैं, लेकिन दोनों वचन हमें भाव पर निर्भर है। अनेकान्त की मर्यादा इतनी अंग्रेज सल्तनत के खिलाफ एक ही जगह पहंचते विस्तृत और व्यापक है कि उससे विश्व की सारी हैं।
महावीर-वाणी 1. प्रात्मा अनन्त ज्ञान और सुखमय है । सुख कहीं बाहर से
नहीं पाता । 2. यदि सही दिशा में पुरुषार्थ किया जाय तो प्रत्येक प्रात्मा
भगवान् बन सकता है। भगवान् कोई अलग से नहीं
होते। 3. सब प्रात्माए समान हैं । कोई छोटा बड़ा नहीं है।
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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