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महावीर उवाच
शुद्ध भावना श्री मोतीलाल सुराणा, इन्दौर
श्री मोतीलाल सुराना, इन्दौर
सुहसायगस्स समरस्स, साया उलग्गस्स निगामृ साईस्स । उच्छोलणा पहोअस्स, दुल्लहा सुगई तारिसमस्स ।।
-दशवकालिक सत्र4/126
भावरणा जोगशुद्धप्पा जलेरगावा व प्राहिवा । छुरे का उपयोग करे डाकू और डाक्टर। एक चाहे मारना, दूसरा रक्षक बनकर ।। बिल्ली मुंह में पकड़ती, चूहे को व निज शिशु को एक को चाहे मारना दूसरे की परवरिश करे ॥ भावों का परिणाम भिन्न है, शुद्ध भावों की महिमा है ।। बालक को बालक यदि मारे, भाव द्वेष का बीच में। उसी पुत्र को पिता पीटे तो, सुधार भाव है चित में । जो भी हो समान क्रिया तो, भावों में तो बदला है । जल में नौका तिरती जाती, पार कई लग जाते हैं। शुद्ध हृदय वाले भी धर्मी निश्चित शिवपुरी पाते हैं ।।
साधु बनकर कोई साधक, चाहे पाना सुख बनावटी। जिव्हा जिसकी चखना चाहे, माल मलिदा चाट-चटपटी ।।
तन धोवे जो सजने खातिर,
शयन करे गादी तकिये पर । विषयों में जिसका मन ललचे, नहीं उसे हो मोक्ष प्राप्ति ।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 11
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