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तद्भव स्त्री मुक्ति के विरोधी निम्न तर्क और वस्त्र परिग्रह है अतः संयम की उत्पत्ति में प्रस्तुत करते हैं
बाधक है। 1. स्त्री के सामान्य रत्नत्रय तो होता है जो 7. पीछी कमण्डलु आदि परिग्रह न होकर मोक्ष का कारण नहीं हैं नहीं तो गृहस्थ को भी संयम के साधन हैं जो छोड़े भी जा सकते हैं किन्तु मोक्ष मानना पड़ेगा । विशेष रत्नत्रय स्त्री में इस स्त्री वस्त्र त्याग कभी नहीं कर सकती। कारण नहीं हो सकता कि उसमें तीव्र शुभ और
8. वस्त्र की तरह शरीर मूर्छा का कारण अशुभ भाव दोनों ही अपने चरमोत्कर्ष रूप में नहीं ..
नहीं है। हो सकते । स्त्री में रत्नत्रय की प्रकर्षता का अभाव अनुमान से सिद्ध है जैसे कि शकट का उदय वृत्तिका 9. स्त्रियां साधुओं द्वारा वंदनीय नहीं हैं । के उदय होने पर ही होता है यद्यपि दोनों में कार्य- घर पर भी पुरुषों का ही प्राधान्य होता है स्त्रियों कारण सम्बन्ध नहीं हैं।
का नहीं।
___10. स्त्रियों में परिग्रह सहन करने की शक्ति 2. स्त्रियों के योनि, स्तन आदि स्थानों में
नहीं होती। उनके उत्तम संहनन का प्रभाव सूक्ष्म जीव उत्पन्न होते और मरण करते रहते हैं,
होता है। मासिक धर्म भी होता है, स्वभाव से ही वे भीरु प्रकृति की होती हैं इसलिए उनके मुक्ति के योग्य- 11. जिस जीव के सम्यक्दर्शन की उत्पत्ति शील का अभाव है।
हो जाती है वह स्त्री जन्म धारण नहीं करती।
3. स्त्रियां स्वभाव से चञ्चल होती हैं अतः
12. प्रायिकानों के महाव्रत उपचार से होते वे प्रमादशील होती हैं उनका एक नाम प्रमदा है वास्तविक नहीं । उनकी इसी विशेषता के कारण है।
!3. षोडस कारण भावनाओं से जो तीर्थ'कर ___4. स्त्रियों के सामान्य संयम तो होता है किन्तु
प्रकृति का बन्ध होता है उसके फलस्वरूप पुरुष ही मुक्ति योग्य विशेष संयम नहीं होता। यदि ऐसा
तीर्थकर हो सकते हैं। यदि स्त्री तीर्थ कर की
मुक्ति है तो फिर उसकी स्त्रीरूप में प्रतिमा बनाकर नहीं है तो फिर उनके ऋद्धि विशेष उत्पन्न करने वाला संयम क्यों नहीं होता।
क्यों नहीं पूजी जाती।
14. ध्यानारूढ़ मुनि को वस्त्र प्रोढ़ा देने पर 5. स्त्रियां सचेल होने से मुक्त नहीं हो सकती नहीं तो देश संयमी को भी मुक्ति माननी होगी।
भी वह ममत्व के अभाव में निर्वस्त्र ही होता है ।
इस विषय की विस्तृत जानकारी के लिए न्याय6. स्त्रियां गृहस्थों की तरह ही वस्त्र आदि कुमुदचन्द्र, प्रमेयकमलमार्तण्ड, सूत्र पाहुड़, योगपरिग्रह की धारी होने से मुक्त नहीं हो सकतीं। सार, प्रवचनसार, धवला, ज्ञानार्णव, गोम्मटसार सम्पूर्ण परिग्रहों के त्याग पर ही संयम संभव है आदि ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिये।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77 Jain Education International
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