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वास्तविक अर्थ और उद्देश्य का निश्चय करना ग्रहण किया जा सकता है अत: कथन को अधिक होगा।
निश्चयात्मकता प्रदान करने के लिए सप्तभंगी में
स्यात् के साथ "एव" शब्द के प्रयोग की योजना स्यात् शब्द का अर्थ विश्लेषण :
भी की। जैसे-स्यादस्त्येव घट:। यद्यपि "एव" सप्तभंगी के प्रत्येक भंग के प्रारम्भ में प्रयुक्त शब्द का यह प्रयोग अनेकान्तिक सामान्य वाक्य को होने वाले स्यात् शब्द के अर्थ के सन्दर्भ में जितनी सम्यक् ऐकान्तिक विशेष वाक्य के रूप में परिणत भ्रान्ति दार्शनिकों में रही है, सम्भवतः उतनी अन्य कर देता है। फिर भी इतना तो सुनिश्चित है कि किसी शब्द के सम्बन्ध में नहीं है । संस्कृत भाषा में जैन तर्कशास्त्र में स्यात् शब्द का प्रयोग अनिश्चयास्यात् शब्द का प्रयोग अनेक रूपों में मिलता है। स्मक या संशयपरक अर्थ में न होकर विशिष्ट कहीं विधि लिंग की क्रिया के रूप में तो कहीं प्रश्न पारिभाषिक अर्थ में ही हुआ है। किन्तु यह विशिष्ट के रूप में और कहीं उसका प्रयोग कथन की ___ अर्थ क्या है ? सर्वप्रथम जैसा कि सभी प्राचीन अनिश्चयात्मकता की अभिव्यक्ति करने के लिए भी जैन प्राचार्यों ने बताया है कि स्यात् यह "निपात" होता है । इन्हीं प्राधारों पर विद्वानों ने स्यात् शब्द शब्द वाक्य में अनेकान्तता का द्योतक है। (वाक्येके हिन्दी भाषा में "शायद", "सम्भवतः", "कदा- वनेकान्तद्योती'-प्राप्त मीमांसा 103)। फिर भी चित्' और अंग्रेजी भाषा में Sime, how, May हमें यह स्पष्ट करना होगा कि वाक्य के उद्देश्य, be, Probable प्रादि प्रनिश्चयात्मक एव संशय विधेय आदि विभिन्न अंगों के सम्बन्ध में उसके परक अर्थ किये हैं । यद्यपि यह सही है कि किन्हीं अनेकान्तद्योती होने का क्या तात्पर्य है ? मेरी दृष्टि सन्दर्भो में स्यात् शब्द का अर्थ कदाचित्, शायद, में स्यात् शब्द के एक होते हुए भी वह वाक्य के सम्भवतया आदि होता है किन्तु मूल प्रश्न यह है उद्देश्य. विधेय और क्रिया (संयोजक) के सन्दर्भ में कि क्या जैन विचारकों ने उसका इस अर्थ में प्रयोग अलग-अलग तीन अर्ज देता है। जिनका स्पष्टीकरण किया है ? सर्व प्रथम तो हमें यह जान लेना प्रावश्यक है । यदि हम स्यात् शब्द के बाद के कथन चाहिए कि जैन परम्परा में अनेक शब्दों का प्रयोग को कोष्टक में रख दें, तो यह बात अधिक स्पष्ट उनके प्रचलित अर्थ में न होकर विशिष्ट पारिभा- हो जायगी जैसे 'स्यात् (प्रात्मा नित्य है। क्योंकि षिक अर्थों में हुअा है, उदाहरण के लिए धर्म शब्द सप्तभंगी के कथनों का पूर्ण बल तो स्यात शब्द की का धर्म द्रव्य के रूप में प्रयोग । यदि विद्वानों ने योजना में है।" अब कोष्टक हटाने पर इसका रूप जैन परम्परा के मूल ग्रन्थों को देखने का प्रयास होगा स्यात् प्रात्मा स्यात् नित्य स्यात् है (अस्ति)। किया होता तो उन्हें यह स्पष्ट हो जाता कि जैन अब हम देखें कि स्यात प्रात्मा. स्यात नित्य और परम्परा में 'स्यात्' शब्द का क्या अर्थ है। समंत- स्यात् मस्ति में प्रत्येक के साथ लगा हुआ स्यात् भद्र, अमृतचन्द्र, मल्लिषेण आदि सभी जैन दार्शनिकों
क्या अर्थ देता है। ने स्यात् शब्द को अनेकान्तता का द्योतक, विवक्षा या अपेक्षा का सूचक तथा कथंचित् अर्थ का स्यात् शब्द क्रिया या संयोजक के सन्दर्भ में प्रतिपादक माना है । इस प्रकार यह बात स्पष्ट हो अनेकान्तिकता का सूचक नहीं है क्योंकि अनेकान्तिक जाती है कि जैन दार्शनिकों ने स्यात् शब्द का क्रिया तो अनिश्चय या संशय को ही व्यक्त करेगी। संशय परक एवं प्रनिश्चयात्मक अर्थ में प्रयोग नहीं स्यात् को 'होना' क्रिया का रूप अथवा अनिश्चय किया है। मात्र इतना ही नहीं वे इस सम्बन्ध में सूचक क्रिया विश्लेषण मानने के कारण ही स्याद्वाद भी सजग थे कि स्यात् शब्द का संशयपरक अर्थ को अनिश्चयवाद, संशयवाद या प्रात्मविरोधी
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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