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ज्ञान का खजाना
वैद्य रमेशचन्द्र जैन, बांझल
खोजने से ताज भी प्रो राज अपना जानते हो तुम व्यथा. लिख चुके जिस पर कहानी सोच में खोये हुये धनपति की नीति से कर सके नहिं दूर तुम निर्धनों के प्रश्र अब तक है जवानी अरे सत्य और ईमानदारी छल फरेवी जालसाजी ने छुपा दो फूल को भी शूल में परिणत बतादी सत्य कहना क्या ! गुनाह है बोध है क्या? छाया पकड़ना . ध्वस्त इसमें प्राज लाखों जिन्दगानी। अहिंसा के पुजारी ने जिसे अपना बनाया उसीकी आवाज पर चलता जमाना फिर इसे हम क्या कहें ? ज्ञान का खजाना
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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