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विश्व के कल्याण
* श्री शर्मनलाल जैन "सरस" सकरार
विश्व के कल्याण मेरे, इस कलम की वन्दना लो, हे अहिंसा प्राण मेरे, इस वतन की वन्दना लो,
[ एक ] तिमिर हिंसा का धरा से, गगन तक छाया हुआ था, बन गया था पशु मानव, स्वर्ग अकुलाया हुआ था, मौन थी नंगी मनुजता, अधम जय पाने लगे थे, सत्य के शव पर निरन्तर, गीध मंडराने लगे थे, हे विजय अभियान मेरे, उस समय की वन्दना लो, विश्व के कल्याण मेरे, इस वतन की वन्दना लो,
उस समय तुमने सुधाकर, देश को सम्वल दिया था, देख अति साहस तुम्हारा, नियति को अचरज हुअा था, जब चले तुम महल तजकर, लाल त्रिशला के दुलारे, बने हिंसक से अहिंसक, जिंदगी के क्षण तुम्हारे, हे अमर उत्थान मेरे, आज मन की वंदना लो, विश्व के कल्याण मेरे आज मन की वंदना लो,
[ तीन ] हे बृहत वैराग्य जब से, आप शिवपुर को पधारे, हो गया है योग पंगु, भोग ने फिर कर पसारे, दानवी वृति ने छीना, परम मंगल का महरत, यह मही महसूस करती, वीर की फिर से जरूरत, हे जगत जलयान, इस सेवक 'सरस' की अर्चना लो, विश्व के कल्याण मेरे इस वतन की वंदना लो,
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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