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जो शून्यवाद का उपदेश करता है वह अपने आगम होता तो कदाचित् ही न होना चाहिए; किन्तु सदा के कथनानुसार ही करता है, इसलिए उसने अपने ही होते रहना चाहिए; क्योंकि जिस प्रात्मा में यह प्रागम में सत्यता स्वीकार कर ही ली अतः शून्यता उत्पन्न होता है वह सदा विद्यमान रहता है । जो की सिद्धि कैसे हो सकती है ? दूसरी बात यह है ज्ञान कदाचित् ही होता है सदा नहीं होता है वह कि प्रमाण सिद्धि प्रमेय के बिना नहीं हो सकती ज्ञान कदाचित् उत्पन्न होने वाले कारणों से ही इसलिए शून्यवादी प्रमाण को नहीं माने तो प्रमेय उत्पन्न हुमा देखा जा सकता है। जैसे बिजली का पदार्थ भी सिद्ध नहीं हो सकते हैं । यदि प्रमेय कुछ ज्ञान । इस प्रकार प्रत्यक्ष से प्रात्मा की सिद्धि होना हैं नहीं तो शून्यवाद की सिद्धि के लिए अधिक असम्भव है; क्योंकि जो प्रात्मा के साथ कभी प्रलाप करना व्यर्थ है, मौन धारण ही श्रेयस्कर है; बिछुड़ता न हो, किन्तु सदा साथ ही मिलता तो क्योंकि शून्यवाद भी एक प्रकार का प्रमेय है।19 ऐसा कोई हेतु दिखाई नहीं देता है। प्रागम परस्पर
विरोधी हैं अतः उनमें कोई प्रमाणता नहीं है। एक बौद्धों द्वारा प्रमाता, प्रमेय प्रादि की प्रसिद्धि :
शास्त्र पदार्थ को जिस प्रकार सिद्ध करता है. उस बौद्ध : प्रमाता प्रमेय, प्रमाण तथा प्रमिति ये पदार्थ को दूसरा शास्त्र उससे अन्यथा सिद्ध करता चार तत्व जो अन्यवादियों ने कल्पित किए हैं वे करता है । इस प्रकार जब शास्त्रों में स्वयं प्रमाणता सर्वथा झूठ हैं; क्योकि विचार करने पर जैसे गधे के नहीं है तो वे दूसरे पदार्थों का निश्चय कसे करा सींग किसी प्रकार सिद्ध नहीं होते उसी प्रकार ये सकते हैं ? इस प्रकार प्रमाता नहीं है । चारों तत्व भी सिद्ध नहीं होते । प्रमाता नाम प्रात्मा का है परन्तु इस प्रात्मा का किसी प्रमाण वाह्य पदार्थ प्रमेय कहे जाते हैं । उनका खण्डन द्वारा ज्ञान न होने से यथार्थ में कुछ नहीं। प्रत्यक्ष पहले किया जा चुका है। स्व और पर के अवभासक से तो प्रात्मा जाना ही नहीं जा सकता; क्योंकि ज्ञान को प्रमाण कहते हैं। जब प्रमेय ही नहीं है इन्द्रियां केवल रूप, रस, गध और स्पशं वाले तो प्रमाण किसका ग्राहक होगा ? क्योंकि उसका पदार्थों को ही जान सकती हैं। प्रात्मा में रूप, कोई विषय ही नहीं रहेगा। यदि प्रमेय तथा प्रमाण रस, गंध, स्पर्श नहीं है अतः पदार्थ को नहीं जान माने भी जाय तो क्या जब पदार्थ उत्पन्न होता है, सकती हैं।
उसी समय प्रमाण उसको जानता है अथवा किसी प्रश्न : प्रात्मा के प्राश्रय से होने वाले अहकार
दूसरे समय ? प्रथम पक्ष स्वीकार करने पर तीन
लोक के सभी पदार्थ उस ज्ञान में प्रतिभासित होना का मानस प्रत्यक्ष होने से प्रात्मा का मानस प्रत्यक्ष सिद्ध है।
चाहिए; क्योंकि समकालीन होने से जिस पदार्थ
को जिस समय में जिस प्रकार का जो ज्ञान जानता उत्तर : प्रात्मा का मानस प्रत्यक्ष भी सिद्ध है उसी प्रकार और भी पदार्थ जो उसी समय नहीं होता; क्योंकि मैं गोरा हूँ, मैं काला हूं इस उत्पन्न होते हैं वे सब उस ज्ञान के समकालीन हैं । प्रकार का अहकार होता है वह शरीर का प्राश्रय यदि कहो कि पदार्थ उत्पन्न होने के अनन्तर प्रमारण लेकर भी उत्पन्न हो सकता है। जिस धर्म का उस पदार्थ को जानता है तो प्रश्न है कि वह ज्ञान जिसके साथ सम्बन्ध माना जाता है उसके अतिरिक्त निराकार है अथवा साकार ? यदि वह निराकार किसी दूसरे पदार्थ के साथ भी उसका सम्बन्ध यदि ही है तो जिसका कुछ प्राकार ही नहीं उस ज्ञान में रह सकता हो तो उस धर्म को हेतु मानना व्यभि- प्रत्येक पदार्थ का निश्चय होना कठिन है। यदि चारी है। यदि प्रहकार का ज्ञान प्रात्मा में ही वह किसी प्राकार सहित है तो वह ज्ञान का प्राकार
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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