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में गणधर का प्रभाव था। जब विद्वान् ब्राह्मण गौतम उनके शिष्य बन गए तभी तीर्थंकर महावीर की दिव्य ध्वनि खिरी (प्रस्फुटित हुई) ।
विश्रुत प्रमोध दर्शन सुपर्व
सर्वातिशयिनी दिव्यध्वनि
मानसपुर में मानसरोवर
बस गये में सौरभ-से ।। सुमन श्रात्म-सुख का प्रशोक वृक्ष लिख रहे गौतम ऋषि
कपिलाओं की किरणावलियां
वीर दिनकर परिलक्षित दिव्य ||
राजा बिम्बसार (श्रेणिक) उनके समवशरण में प्रधान श्रोता बनकर उपस्थित होता था । इसके उपरान्त तीस वर्ष तक महावीर स्वामी ने लोक कल्याण के हेतु धर्म - प्रभावना की दृष्टि से उत्तर से दक्षिण पूर्व से पश्चिम तक मंगल विहार किया । जहां भी उनका समवशरण जाता था, धर्मचक्र श्रागे-आगे चलता था । सब और सुभिक्ष छा जाता था और पृथ्वी शस्य श्यामला बनकर उनका स्वागत करती । प्राणीमात्र के लिए उनका महान् सन्देश था - जीश्रो श्रौर जीने दो । किसी जीव को कष्ट मत पहुंचा क्योंकि वह भी तुम्हारी तरह श्रात्मा से संयुक्त है । सत्याचरण ही मानव-जीवन को उज्ज्वल बनाने वाला है । किसी के धन के प्रति लोलुप बनकर उसकी चोरी नहीं करनी चाहिए। श्रावश्यकता से अधिक वस्तु का संग्रह अशान्ति का कारण है । संयम हमारे जीवन को महान् बनाता है ।
शान्तिप्रिय लोक विग्रही नाथ सरिता सम प्रवाह अनवरतसप्त भंग भ्रम जाल निवर्त्तक वीर अनुकूल प्रजागरण सरिता सी ॥
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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प्रालोक लोक का रत्नदीप त्रिरत्नों का दीपक प्ररणव ज्ञान दीप सप्त भंग रश्मि अनन्त पथ अनेकान्त के पुंज ॥
तीर्थ ंकर महावीर ने सिद्धान्त रूप में अनेकान्त (स्यादवाद) का प्रतिपादन किया। क्योंकि यह प्रात्मा अनन्तधर्मवाली है । जब परमाणु प्रनन्त गुण वाला है तो? त्रैलोक्यमूल्य श्रात्मा का क्या कहना ? उसका निरूपण भला एकान्त दृष्टि से कैसे किया जा सकता है ? इस प्रकार मानव के कल्याण हेतु धर्म प्रभावना करते हुए भगवान् महावीर ने तीस वर्ष व्यतीत किये प्रौर अपने अन्तिम समय में मल्लों की राजधानी पावानगर पहुंचे । वहां उन्होंने बहत्तर वर्ष की अवस्था में महामणिशिलातले शुक्ल सभा भवन के उद्यान के एक मण्डप में 48 घण्टे योगनिरोध करके ईसा पूर्व 527, कार्तिक कृष्णा 30 प्रमावस मंगलवार, 15 अक्तूबर को निर्वाण प्राप्त किया । हस्तिप ल सहित 18 गणराज्यों के गणमुरूयों ने दीपकों की पंक्ति सजाकर तीर्थ कर महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया। इस महान् उत्सव को मनाने के लिए उन्होंने पृथ्वी और प्राकाश को दीपकों के प्रकाश से आलोकित किया। उसी दिन से हमारे देश में प्रति वर्ष प्रमावस्या कृष्णा 30, कार्तिक को झोंपड़ी से लेकर राजमहल तक दीपावली का महान् पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। तीर्थ कर महावीर स्वामी ज्ञान के पुंज थे। उनकी ज्ञान ज्योति से समस्त पृथ्वीमण्डल प्रकाशित हो उठा । ज्ञान दीप प्रस्त हो गया इसका प्रतीक जैन लोग दीपक जलाकर मनाते हैं ।
आज भी हम दीपकों के प्रकाश में भगवान महावीर की उसी ज्ञान ज्योति का प्रतीक दीपक जलाकर निर्वाण पर्व एवं दीपावली मनाते हैं ।
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