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वारणी में स्याद्वाद और विचारों में अनेकान्तता जैन दर्शन को अपनी एक विशेषता है। विद्वान् लेखक ने प्राधुनिक त्रिमूल्यात्मक तर्कशास्त्र की त्रयी. निश्चितता, सम्भाव्यता असम्भाव्यता की तुलना जैन दर्शन की त्रयी-प्रमाण, नय तथा दुर्नय से करते हुए उनके साम्य और वैषभ्य को विशदतापूर्वक स्पष्ट किया है । निबन्ध परिश्रमपूर्वक लिखा गया है तथा स्याद्वाद और अनेकान्त के सम्बन्ध में कई नई उद्भावनाए करता है ।
प्र० सम्पादक
सप्तभंगी, प्रतीकात्मक और त्रिमूल्यात्मक, तर्कशास्त्र के सन्दर्भ में
.. * डा० सागरमल जैन, भोपाल (म०प्र०)
अनेकान्त, स्याद्वाद, नयवाद और सप्तभंग एक है। हमारी भाषा विधि-निषेध की सीमात्रों से दूसरे से इतने घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं कि उन्हें घिरी हुई है "है" और "नहीं है" हमारे कथनों के प्रायः समानार्थक मान लिया जाता है, जबकि उनमें दो प्रारूप है किन्तु कभी-कभी हम अपनी बात को अाधारभूत भिन्नताए हैं, जिनकी अवहेलना करने स्पष्टतया "है" (विधि) और "नहीं है" (निषेध) पर अनेक भ्रान्तियों का जन्म होता है। अनेकान्त की भाषा में प्रस्तुत करने में असमर्थ होते हैं अर्थात् वस्तुतत्व की अनन्त धर्मात्मकता का सूचक है तो सीमित शब्दावली की यह भाषा हमारी अनुभूति स्याद्वार ज्ञान की सापेक्षिकता एवं उसके को प्रकट करने में असमर्थ होती है. ऐसी स्थिति में विविध आयामों का । अनेकान्त का सम्बन्ध तत्व हम तीसरे विकल्प अवाच्य या प्रवक्तव्य का सहारा मीमांसा है, तो स्याद्वाद का सम्बन्ध ज्ञान मीमांसा। लेते हैं अर्थात् शब्दों के माध्यम से "है" और "नहीं जहां तक सप्तभंगी पौर नयवाद का प्रश्न है, है" की भाषायी सीमा में बांधकर उसे कहा नहीं सप्तभंगी अनेकान्तिक वस्तु तत्व के सापेक्षिक ज्ञान जा सकता है। इस प्रकार विधि, निषेध और की निर्दोष भाषायी अभिव्यक्ति का ढंग है, तो प्रवक्तव्य सम्बन्धी भाषायी अभिव्यक्ति के तीन नयवाद कथन को अपने यथोचित सन्दर्भ में समझने मूलभूत प्रारूपों और गणित शास्त्र के संयोग नियम या समज्ञान की एक दृष्टि है। प्रस्तुत निबन्ध में (Law of Combination) से बनने वाले उनके हमारा उद्देश्य केवल प्रतीकात्मक और त्रिमूल्यात्मक सम्भावित संयोगों के आधार पर सप्तभंगी के स्यात् तर्कशास्त्र के सन्दर्भ में सप्तभंगी की समीक्षा तक अस्ति, स्यात् नास्ति आदि भंगों का निर्माण किया सीमित है अतः इन सब प्रश्नों पर विस्तृत विवेचना गया है किन्तु उसका प्राण तो स्यात् शब्द की यहां सम्भव नहीं है । सप्तभंगी स्याद्वाद की भाषायी योजना में ही है । मतः सप्तभंगी सम्यक् अर्थ को अभिव्यक्ति के सामान्य विकलों को प्रस्तुत करती समझने के लिए सबसे पहले स्यात् शब्द के
महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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