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परम पूज्य श्री वर्धमान को
* हास्य कवि श्री हजारीलाल जैन "काका", पो. सकरार
स्वयं प्रतीक बन महावीर ने जग को सद् उपदेश दिया था, केवल परिग्रह त्याग कराने नग्न दिगम्बर वेष किया था, भरता नहीं घाव वाणी का वाणी पर अनुशासन रक्खो, बारह वर्ष मौन व्रत रख कर यही मूक संदेश दिया था,
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खुद ही दुःख सह कर जीवों को जीने का विश्वास दिया था, या यों समझो पतझर बनकर इस जग मधुमास दिया था, जो हिंसा को धर्म मान कर अधिकार में भटक रहे थेउसको सत्य अहिंसा वाला प्रबल, प्रखर, प्रकाश दिया था,
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जिन्हें अछूत कहा करते थे माने जाते अशुचि अपावन, जिनकी आँखों में रहता था अत्याचारों से नित सावन, धर्म नाम पर जिन्हें यज्ञ में पशुओं के संग होमा जाताअभयदान देकर खुशियों का भोर उतारा उनके प्रांगन,
जिनके चरणों में ऋषि मुनिगण सदा लगाते रहे ध्यान को,' जिनके पद चिन्हों पर चल कर पाते रहते पूर्ण ज्ञान को, जिनकी सद्वाणी के द्वारा ज्ञानामृत की धार बही थी'काका' कवि का कोटि नमन है परम पूज्य श्री वर्धमान को,
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महावीर जयन्ती स्मारिका 77
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