Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas Author(s): Vaktavarlal Mahatma Publisher: Vaktavarlal Mahatma View full book textPage 9
________________ (११) रुपनाथदामजी का पत्र जहाजपुर से वि० सं० १६२२ वै० सुद ७ "मिद्ध श्री उत्यपुर शुभस्थाने सर्वोपमा विराजमान लायक बावजी श्री खेमराजजी पेमराजजी जोग जहाजपुर से देवचन्द मघनाथदाम की वन्दना वॉचमो अठाका समाचार भला छे आपका महा मना चाहिजे तो म्हाने परम सुख होवे आप मोटा छो प्रजनीक को मदीप D कृषा महरबानी राखो छो ज्य ही रखावमी नीका रह मो डीला को जस राम्ब सो हास्याँ पर आपकी माजी ने पावॉ धोग कीजो। महताजी मुरली धरजी को पत्र न. १६२५ फागण विद द "सिद्ध श्रा उदयपुर शुभ सुथाने मरव श्रापमा लायक गुरु महाराज श्रीखेमराजजी एतान जहापुर श्री महा मुरली वर लिखता दण्डवत बचावसी अप्रञ्च ।। महना अजीतहिजो को पत्र वावजी श्री ५ श्री खेतराजजो,तूं बन्दना बञ्चावनी प्राधा रेसी कृपा महरवानगी हे ज्यू ही रेवे अपरञ्च । महताजी पन्नालालजी सी. आई ई. "सिद्ध श्री गुरु महागन श्री ५ श्री खेमराजजी हजूर पन्नालाल की दण्डवत मालूम होव महरवानी है ज्यू ही रहे। वि० सं० १९२२ का चेत बद २ इनको मं० १८८७ का पोप विद ५ सी. आई. ई. का खिताव नमगा गवर्नमेण्ट मरकार आलीये हिन्द से अता हुआ। इनकं लघु भ्राता लक्ष्मीलालजी का पत्र कनेरे ग्राम से। 'सिद्ध श्री उदयपुर शुभ सुथान सरव अोपमा सदा विराजमान अनेक ओपमा लायक पुज्य बावजी साहब श्री १०८ श्री खेमराजजी एलान श्रीकणेरा थी मदा संवक लछमीलाल महता लि. दण्डोत पावाँ धौग मालूम होवे अठारा समाचार श्री आपकी कृपा सुनजर कर भला है आपरा सदा भला चावे तो सेवक ने परम आनन्द होवे सदा सेवक पर सुनजर गुरु पणो है जी VPage Navigation
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