Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas Author(s): Vaktavarlal Mahatma Publisher: Vaktavarlal Mahatma View full book textPage 7
________________ (१) चाहो तो महताजी राय पन्नालालजी की हवेली पर उनके कँवर फतहलालजी ने पुस्तकालय कायम किया है, उसमें उस समय के प्रसिद्ध पुरुषों के चरित्र समेत संक्षेप इतिहास के मौजूद हैं। उक्त पण्डितजी ने दो विवाह किये थे। पहला तो देलवाड़ा (मेवाड़) मे नाणावाल गच्छि भारद्वाज गोत्रीय पण्डित रतनजी के पुत्र मय्याचन्दजी की पुत्री वृद्धिवाई के माथ दूसरा विवाह नकुमई ग्वालियर साँडेर गच्छ वसिष्ठ गोत्री खुमाणजी की कन्या गेदवाई के साथ किया। इनकी ज्योतिष विद्या की प्रखरता के विषय में मैं सिर्फ एक ही उदाहरण देता हूँ । सं० १६१४, ईस्वी सन् १८५७ मे जो हिन्दुस्तानियो के व अग्रेजो के युद्ध हुआ जिसको गदर के नाम से प्रसिद्ध किया जाता है, इस समय राजकीय ज्योतिष पण्डितो ने भीपण रूप से युद्ध होने की घोपणा की थी लेकिन इन महाशय ने एक भविष्य वाणी लिख मारफत मोड़जी गोटा वाला के श्री जी मे नजर कराई। उक्त वाणी मे यह मजमून था "मेवाड़ में बदले लोगों की सेना आवेगा लेकिन उदयपुर से १२ कोस के अन्तर पर युद्ध होगा, और वे लोग परास्त होकर भागेंगे। व उनके घोड़े शस्त्र वगैरह सामान श्री जी मे नजर होगा । मेवाड़ को हानि न पहुँचेगा और अंग्रेजो की हुकूमत कायम रहेगा। चुनाचे यह युद्ध रूकम गढ़ के छापर में हुआ और वे लोग परास्त होकर भाग गये। सामान यहाँ नजर हुआ, वाद अमन होने के सर्वे भविष्य वाणीयें नजर हुई उनमें यह ठीक मिली जिस पर महागणाजी श्री स्वरूपसिहजी साहब ने प्रसन्न होकर राज्य सन्मान से सन्मानित किए, याने स्वर्ण के कड़े सिरोपावPage Navigation
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