Book Title: Mahatma Pad Vachi Jain Bramhano ka Sankshipta Itihas
Author(s): Vaktavarlal Mahatma
Publisher: Vaktavarlal Mahatma

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Page 12
________________ (१४) वह दाणं दारोगा ने देना बन्द कर दिया उस पर यह तनख्वाह पीछी मेरे नाम पर साबित कराने का हुक्म होने के लिये राज श्रीमहक्मे खास में दरख्वास्त दो । उस पर महेक्में मौसूफ से असल महकमें माल में भेजी जावे के बदस्तूर, सायल ने दवावता रहे, मबरखा भाद्रपद शुक्ला ४ वि० सं० १६२० हु. नं. ३१३ हुआ और महकमें माल सहु. नं० ११३ भा० सु०८ सं० १६३०, नकल वास्त तामील हुक्म महकमे खास क दारोगा दाण पास भेजी जावे । इस पर तनख्वाह पीछी मिलनी शुरू होगई। पिताजी के इन्तकाल के १२ दिन बाद कपड़ा के भण्डार से सफेद पाग आई वह बाँधकर श्रीजी में आशीर्वाद देने गया तो नजर करने बाद महतानी पन्नालालजी ने अज किया के नो क्षेमराज को बेटो है अग्इका बापको श्रीजी इन्नत बक्षी ची माफक उत्तर कार्य करनो भी जरूरी है और इके सिवाय इ के पिता के सरकारी दुकान का करजा ५००) व्याजु है । यो जो बालक है। वो पर श्रीमहाराणाजी श्रीशम्भूसिहजी ने आज्ञा .बक्षी के उत्तर कार्य के लिये तो ५०१) नकद और करजा छूट किया जावे । उसकी तामील होकर ५०१) नकद मिले। निसे व निगरानी महता वख्तावरसिंहजी उत्तर क्रिया में द्वादशा किया नाकर जाति में १) एक कल्दार रुपे की दक्षिणा दी गई । फिर महाराणाजी श्री सज्जनसिहजी के राज्य समय मे रियामत का बजट बान्धा गया। उसमें यह तनख्वाह धर्म सभा कायम कर कुल धर्म खाता उसके तालुक किया गया। उस समय २०) के बजाय १०) माहवार कर दिया गया। उस का हाल व पंडित ज्योतिपियों में नाम दरज होने का हाल साबत

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