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शिक्षकका काम करके असके अन्दरूनी वायुमण्डलको मुझे समझना था । रविबाबूने बड़ी क्षुदारतासे मुझे वह मौका दिया था।
वहीं पर बापूके फिनिक्स आश्रमके लोग भी मेहमानके तौर पर रहते थे । बापू जब दक्षिण अफ्रीकासे विलायत गये, तत्र अन्होंने अपने आश्रमवासियोंको श्री ॲड्यूनके पास भेजा था । श्री अॅड्र्यूजने जिन्हे कुछ दिन महात्मा मुशीरामके गुरुकुलमे हरिद्वारमे रखा और बादमे शान्तिनिकेतनमें ।
अखबार पढ़नेके कारण मैं दक्षिण अफ्रीकाका अपने लोगोंका अितिहास जानता ही था । मेरे अक स्नेहीके द्वारा गांधीजीके अफ्रीकाके आश्रमके बारेमें भी सुना था । सम्भव है मुन्हींके द्वारा आश्रमवासियोंने भी मेरा नाम सुना हो । शान्तिनिकेतनमें जाते ही मैं अिस फिनिक्स पार्टी में करीब करीब शरीक हो गया। सुबह और शामकी प्रार्थनायें अन्हीं के साथ करने लगा । शामका खाना भी वहीं पर खाने लगा । ये आश्रमवासी सुबह अठकर अक घण्टा मेहनत मजदूरी करते थे । शान्तिनिकेतनवालोंने भिन्हे अक काम सौंप दिया था । शान्तिनिकेतन की भूमिके पास अक तलैया थी और पास ही अक टीला था। जिस टीलेको खोदकर तलैयाका गड़हा भरने का यह काम था । हम दस बीस आदमी यदि रोज ओक घण्टा काम करते रहते, तो न जाने कितना समय असे पूरा करनेमे लग जाता । लेकिन हमे तो निष्काम कर्म करना था। रोज बडे अत्साहसे हम अपना काम करते जाते थे । मि० पियर्सन भी हमारे साथ आते थे ।
जब बापू शान्तिनिकेतन आये, (अनके आनेका सारा बयान में अलग दूँगा । ) तो रातको देर तक हम बाते करते रहे। सुबह अठकर 1) प्रार्थनाके बाद हम मजदूरीके लिये गये । वहाँसे लौटकर आये तो क्या देखते हैं ! हम लोगोंका नाश्ता फल आदि सब काटकर अल्ला अलग थालियों में तैयार रखा है । हम सबके सब काम पर गये थे, तब माता -जैसी यह सब मेहनत किसने की ? मैंने बापूसे पूछा ( अन दिनों मैं अनसे अंग्रेजी में ही बोलता था ) - ' यह सब किया किसने ?' वे बोले – ' क्यों, मैंने किया है।' मैंने सकोचसे कहा- -' आपने क्यों किया ? मुझे अच्छा नहीं लगता कि आप सब तैयारी करें, और हम बैठे खाये । '
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